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________________ अन्वयार्थ- (णिम्मलं सीलेण) निर्मल शील से (जसो) यश होता है (देवा समीवमाएंति) देवगण पास में आते हैं (भूभुजो) राजागण (पूजयंति) पूजते है (य) और (परभवे) परभव में (सुगदी) अच्छी गति (होदि) होती है । भावार्थ- निर्मल शीलव्रत (ब्रह्मचर्य) के पालन करने से देवगण पास आते है, राजा लोग पूजा-सम्मान करते है, परभव अर्थात् मरण के बाद दूसरे जन्म में सुगति होती है और इस भव तथा परभव में यश फैलता है । णिस्सीला पुरिसा णारी, इहेव कुक्करा इव । लहंते वध-बंधादि, परत्थ-णिरयं परं ॥२०॥ अन्वयार्थ- (णिस्सीला) शील रहित (पुरिसा-णारी) पुरुषस्त्रियाँ (कुक्करा इव) कुत्ते के समान हैं [वे] (इहेव) यही पर ही (वध-बंधादि) वध-बंधन आदि (लहंते) पाते है [तथा] (परत्थ) परगति में (परं) भयंकर (णिरयं) नरक को [पाते हैं | भावार्थ- जो पुरुष और स्त्रियाँ शील (एकदेश ब्रह्मचर्य) रहित हैं, वे कुत्तों के समान जिस किसी से भी संबंध बनाते रहते हैं अथवा लोगों की दृष्टि में वे कुत्तों के समान गिने जाते हैं । वे इस भव में यहाँ पर तो वध-मारपीट, बंधन-कैद की सजा आदि पाते ही हैं तथा मरकर भी वे दूसरे भव में भयंकर नरक को पाते हैं । जो तवस्सी वदी मोणी, णाण-जुत्तो जिदिदियो । कलंकयदि णिस्संक, इत्थीसंगेण सो वि य ॥२१॥ अन्वयार्थ- (जो) जो (तवस्सी) तपस्वी, (वदी) व्रती (मोणी) मौनी, (णाणजुत्तो) ज्ञानयुक्त, (य) और (जिदिंदियो) जितेन्द्रिय हैं (सो वि) वह भी (इत्थीसंगेण) स्त्री-संगति से (णिस्संक) निश्चित (कलंकयदि) कलंकित होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002546
Book TitleNidi Sangaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar
PublisherJain Sahitya Vikray Kendra Udaipur
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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