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________________ ७६ समत्वयोग-एक समनवयदृष्टि निम्न भावनाओं का वर्णन है - "मैत्री-प्रमोद-कारुण्य-माध्यस्थ्यानि नियोजयेत् । धर्मध्यानमुपस्कर्तुं, तद्धि तस्य रसायनम् ॥"" इसके बाद में ८ श्लोक में प्रत्येक भावना की व्याख्या है। "मैत्री पवित्रपात्राय, मुदिता मोदशालिने । कृपोपेक्षा प्रतीक्षाय, तुभ्यं योगात्माने नमः ॥५ श्री सिद्धर्षि गणी विरचित उपमिति में चार भावनाओं का वर्णन है, वह इस प्रकार है - "तदङ्गीकृत्य जीवेन सत्त्वगुणाधिक-क्लिश्यमानाऽविनयेषु मैत्री-प्रमोद-कारुण्य-माध्यस्थ्यानि समाचरणीयानि भवन्ति" श्री मुनि सुंदरसूरीश्वरजी महाराज रचित 'अध्यात्म कल्पद्रुप' में चार भावनाओं का सुंदर वर्णन है - "चित्तबालक ! मा त्याक्षीरजनभावनौषधीः । यत्त्वा दुर्ध्यानभूता न, छलयन्ति छलान्विषः ॥ इस महापुरुष ने प्रथम श्लोक में भावना के प्रत्यक्ष फल को बताते हुए साधारण व्यक्ति के मन में श्रद्धा उत्पन्न हो, इस प्रकार से वर्णन किया है। "भजस्व मैत्री जगदंगिराशिषु, प्रमोदमात्मागुणिषु त्वशेषतः । भवार्तिदीनेषु कृपारसं सदाप्युदासवृत्तिं खलु निर्गुणेष्वपि ॥"८ न्यायविशारद न्यायाचार्य श्री यशोविजयजी उपाध्याय रचित द्वात्रिंशत्वात्रिंशिका में भी चार भावनाओं का वर्णन है। मनोविज्ञान का एक अटल नियम है कि जो व्यक्ति अपने मन में जिस ४. 'योगशास्त्र' प्रकाश ४. श्लोक ११७ ५. श्री वीतरागस्तोत्र. श्लोक १५ ६. उपमिति प्रथम प्रस्ताव ७. प्रथम समताधिकार श्लोक १ ८. प्रथम समताधिकार श्लोक १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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