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________________ ७४ समत्वयोग-एक समनवयदृष्टि ३. शान्त रस प्राप्त करने के विभिन्न साधन (अ) आत्मशुद्धि समत्वयोग को प्रबल बनाने के लिए आत्मशुद्धि की आवश्यकता है क्योंकि आत्मा में काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि वैभाविक विकारों के आ जाने से विषमता बढ़ जाती है, समता का हास हो जाता है। इसलिए भावना के साथसाथ आत्मा में प्रविष्ट दोषों, विकारों, अनिष्टों या अतिचारों का निवारण आत्मालोचना, आत्मनिन्दना (पश्चात्ताप) गर्हणा (दोषों को प्रकट करना), दोषों की मात्रा के अनुरूप प्रायश्चित्त आदि द्वारा आत्मशुद्धि होनी जरूरी है। आत्मशद्धि के बिना समत्वयोग का विकास और संवर्धन रुक जायगा, चैतन्ययात्रा वहीं ठप्प हो जायगी । इसीलिए सामायिक पाठ में परमात्मा के चरणों को अपने हृदय में प्रतिष्ठित करके प्रतिक्रमण, आलोचना, निन्दना, गर्हणा एवं अतिक्रमादि दोषों को जानकर प्रायश्चित्त के द्वारा आत्मशुद्धि का विधान किया है ताकि समतायोग में प्रगति हो सके। आत्मशुद्धि समत्वयोग के तृतीय स्तम्भ-उपासना की सफलता का पथ प्रस्तुत करती है । आत्मशुद्धि भूमिनिर्माण का श्रमसाध्य कार्य करती है और उपासना उसमें समता के बीज बोती है । आत्मशुद्धि की प्रक्रिया उपासना के लिए भूमिका प्रस्तुत करती है। आत्मभूमि को शुद्ध किये बिना डाला हुआ उपासनाबीज, झाड़-झंखाड़ में पड़े बीज की तरह या तो स्वयं सड़-गलकर नष्ट हो जायगा या फिर उसे काम, क्रोध, आसक्ति और अहंकाररूपी चूहे या पक्षी चुग या चट कर जाएँगे । इसी के अनुरूप सामायिक का अर्थ आचार्य ने किया है - सम: सावद्ययोगपरिहार: निरवद्ययोगानुष्ठानुरूप-जीवपरिणाम: तस्य आयः लाभ समायः समाय एवं सामायिकम् । "समस्त सावध (पापमय) मन-वचन-कायजनित प्रवृत्तियों का त्याग करके निरवद्य अहिंसा, सत्य, संयम, समत्व आदि प्रवृत्तियों का अनुष्ठानरूप आत्मपरिणाम जो है उसका लाभ ही सामायिक है।" आशय यह है कि मन, वचन, काया से जो भी अशुद्ध विषमताजनक प्रवृत्ति हुई हो, उसका आलोचनादि द्वारा निवारण करके समभावपोषक शद्ध प्रवृत्ति में रमण करना ही समत्वयोग हैं, सामायिक है । जिससे आत्मशुद्धि हो सके । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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