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________________ ५८ समत्वयोग-एक समनवयदृष्टि महसूस होता था। गाँधीजी अध्यात्म की उस अनुभूति पर खड़े थे जो सब आत्मचेताओं की है। वह है जीवनसत्ता के अखण्ड अद्वैत का बोध, अपने में सब को तथा सब में अपने को एकरूप अनुभव करना । यही उनका सत्य था जिसे उन्होंने भगवान् की अभिधा दी - टूथ इज गॉड' उनसे पच्चीस शताब्दियों पूर्व भगवान् महावीर घोषित कर चुके थे - 'सच्चं भयवं' - सत्य ही भगवान है । वैदिक परम्परा में सत्यनारायण की मान्यता का आधार यही था कि सत्य ही नारायण है, जो सत्य नहीं है वह नारायण नहीं है। आज उसका उलटा अर्थ कर लिया कि नारायण ही सत्य है, शेष सब झूठा है । इसलिए वह सब पूजा का विषय बन गया, जीवन-क्रांति का सन्देश और उसकी महत्ता खो बैठा । सत्य अनुभूति से जीवन-व्यवहार में उतरता है तो अहिंसा बन जाता है । गाँधीजी ने कहा - 'सत्य की खोज में निकलने पर सर्वप्रथम मुझे अहिंसा मिली।' अहिंसा उन्हें मिली थी, अपने भीतर सत्य की खोज करने पर । वह अन्तःस्फुर्त थी, अपने भीतर जो सत्य था वही अहिंसा में बाहर विकीर्ण होने लगा। महावीर की अहिंसा भी यही थी। आज हम अहिंसा को एक सिद्धांत, एक आचार-सूत्र बनाकर गलती कर रहे हैं, एक ऐसी गलती जो हजारों दार्शनिकों एवं आचारशास्त्रियों ने की है। इसी कारण हमारी अहिंसा एक शास्त्र बन गयी है, एक बौद्धिक विचार बन गयी है, मनोविलास का साधन बन गयी है, ऊपर से आरोपित व्यवहार बन गयी है, प्राणहीन आचारसंहिता या भावनाशून्य निषेधों का संकाय हो गयी है। महावीर या गाँधी की अहिंसा मात्र कोई व्रत नहीं थी, वह अन्तर से प्रकाशित थी । व्यवहारिक आदर्शवादी महात्मा गाँधी का सारा चिन्तन समता पर ही आधारित है । आज के इस आर्थिक विषमता के युग में गाँधीजी का अपरिग्रह का सिद्धान्त बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है। अहिंसा अनिवार्यतः अपरिग्रह से जुड़ी है । भीतर जो व्यक्ति सबमें अपने की अनुभूति करता हो उसका स्थूल शरीर-केन्द्रित व्यक्तित्व का बोध मिट चुका होता है । जब स्वामित्व की भावना रहती ही नहीं, तब संग्रह की कामना रहती ही नहीं, तब शोषण व अन्याय वह किसी के प्रति कर ही नहीं सकता क्योंकि सब वही स्वयं तो है। अपना शोषण स्वयं कैसे करे ? अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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