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________________ बौद्ध धर्म में समत्व-योग २७ में आदमी बोल नहीं पाता जबकि क्रोधभाव को व्यक्त करना आवश्यक होता है । ऐसी स्थिति में शक्तिशाली सदा प्रहार करता है और दुर्बल प्रायः गाली देता है, विवशप्रायः थूक कर अपमानित करता है । मैंने उसके क्रोध को पहचान लिया था किन्तु वह और कुछ क्या कहना चाहता था उससे जानने के लिए मैंने उससे पूछा था । वह तो बैर-वह्नि में जल रहा था, पर आनन्द, तुमने अपनी समता क्यों त्याग दी ? यह सुनकर आनन्द निर्वाक रह गए । उन्होंने पश्चात्ताप किया और अभ्यास में चले गए । शाम को वही आदमी लौटकर बुद्धदेव के पास आया । उस समय बुद्धजी शिष्यों को निर्देश दे रहे थे । उसने बुद्धदेव के पैर पकड़ लिए और फफक-फफक कर रोने लगा । मुझ से जघन्य अपराध हो गया, प्रभु ! मुझे क्षमा कर दीजिए । गौतम बुद्धने कहा, मुझे आपके व्यवहार से किंचित् कष्ट नहीं हुआ और ना ही मुझे क्रोध आया । ऐसी स्थिति में क्षमा करने-कराने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता । आप निश्चिन्त रहिए । कहते हैं, उसने बुद्धजी से उपसम्पदा ग्रहण कर ली थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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