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________________ १८ समत्त्रयोग - एक समनवयदृष्टि समतायोग के माध्यम से आत्मा में आत्म-स्वरूप में अवस्थित होने पर ही । समतायोग (सामायिक) की साधना से ही भरत चक्रवर्ती ने शीशमहल में खड़ेखड़े सुन्दर शरीर और बहुमूल्य वस्त्राभूषण आदि से ममत्व छोड़कर केवलज्ञान प्राप्त किया तथा मोक्ष भी । इसी लिए आचार्य हरिभद्र कहते हैं जे केवि गया मोक्खं, जे वि य गच्छंति, जे गमिस्संति । ते सव्वे सामाइयपभावेण त्ति मुणेयव्वं ॥१ जो भी साधक भूतकाल में मोक्ष गये हैं, जो भी वर्तमान में मोक्ष जा रहे हैं तथा भविष्य में भी जो मोक्ष जायेंगे, समझना चाहिये वे सब समतायोग (सामायिक) के प्रभाव से ही गये हैं, जा रहे हैं और जायेंगे । और तो और इहलौकिक जीवन में भी समतायोग के बिना कोई भी कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न नहीं होता । सुख में, दुःख में, संयोग और वियोग में, भवन और वन में, शत्रु और मित्र में, अगर समभाव नहीं होता है तो सर्वत्र अशान्ति ही अशान्ति का दृश्य उपस्थित हो जाता है । जहाँ भी जातिगत, समाजगत, परिवारगत, राष्ट्रगत एवं भाषागत, राजनैतिक, आर्थिक एवं धर्म- साम्प्रदायिक वैषम्य होगा, वहाँ कलह, युद्ध, संघर्ष, द्वेष, विरोध आदि से तो विषमता और अशान्ति ही पैदा होगी, बढ़ेगी । शान्ति के लिए तो समतायोग का ही आश्रय लेना पड़ेगा । जीव समतायोग के अभाव में बार-बार समस्या आने पर कर्मों से संश्लिष्ट हो जाता है, कर्मों का भारी जत्था आत्मा से चिपका लेता है जिसका दुष्फल भविष्य में उसे ही भोगना पड़ता है। प्रश्न होता है कि इन चिपके हुए जीवं और कर्मों को पृथक् करने का कौन-सा सफल उपाय है ? महापुरुष कहते हैं समतायोग रूप सामायिक वह उपाय है । कहा भी है कर्म जीवं च संश्लिष्टं परिज्ञातात्म-विनिश्चयः । विभिन्न कुरुते साधुः सामायिकशलाकया || जिसे आत्मा का परिज्ञान और उसका दृढ़ निश्चय हो गया है ऐसा साधक समतायोग (सामायिक) की सलाई से चिपके हुए कर्म और जीव दोनों को अलग कर लेता है । जिन्दगी के रास्ते में दूर-दूर तक बिखरे हुए कष्टों, समस्याओं और १. आचार्य हरिभद्र : अष्टक प्रकरण' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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