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________________ समत्व प्राप्ति की प्रक्रिया - योग, तप, आध्यात्मिक,.... २९१ इस खींचातानी में विकासगामी आत्मा कभी प्रमाद की तन्द्रा और कभी अप्रमाद की जागृति अर्थात् छठे और सातवें गुण स्थान में अनेक बार जाती - आती रहती है । भँवर या वातभ्रमी में पड़ा हुआ तिनका इधर से उधर और उधर से इधर जिस प्रकार चलायमान होता रहता है, उसी प्रकार छठें और सातवें गुणस्थान के समय विकासगामी आत्मा अनवस्थित बन जाती है । (८) अपूर्वकरण ( निवृत्तिबादर) प्रमाद के साथ होने वाले इस आन्तरिक युद्ध के समय विकासगामी आत्मा यदि अपना चारित्र - बल विशेष प्रकाशित करती है तो फिर वह प्रमादों- प्रलोभनों को पार कर विशेष अप्रमत्त- अवस्था प्राप्त कर लेती । इस अवस्था को पाकर वह ऐसी शक्ति वृद्धि की तैयारी करती है कि जिससे शेष रहे-सहे, मोह-बल को नष्ट किया जा सके। मोह के साथ होने वाले भावी युद्ध के लिए की जाने वाली तैयारी की इस भूमिका को आठवाँ गुणस्थान कहते हैं । (९) अनिवृत्तिकरण कोई विकास - गामी आत्मा तो मोह के संस्कारों के प्रभाव को क्रमश: दबाती हुई आगे बढ़ती है तथा अन्त में उसे बिलकुल ही उपशान्त कर देती है। विशिष्ट आत्मशुद्धि वाला कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा भी होता है, जो मोह के संस्कारों को क्रमशः जड़मूल से उखाड़ता हुआ आगे बढ़ता है तथा अन्त में उन सब संस्कारों को सर्वथा निर्मूल ही कर डालता है । इस प्रकार आठवें गुणस्थान से आगे बढ़ने वाली अर्थात् अन्तरात्म-भाव के विकास द्वारा परमात्म-भाव रूप सर्वोपरि भूमिका के निकट पहुँचने वाली आत्मा दो श्रेणियों में विभक्त हो जाती हैं । एक श्रेणीवाली तो ऐसी होती हैं, जो मोह को एक बार सर्वथा दबा तो लेती हैं, उसे निर्मूल नहीं कर पातीं । अतएव जिस प्रकार किसी बर्तन में भरी हुई भाप कभी-कभी अपने वेग से उस बर्तन को उड़ा ले भागती है या नीचे गिरा देती है अथवा जिस प्रकार राख के नीचे दबी हुई अग्नि हवा का झकोरा लगते ही अपना कार्य करने लगती है किंवा जिस प्रकार जल के तल में बैठा हुआ मल थोडा-सा क्षोभ पाते ही ऊपर उठकर जल को गँदला कर देता है, उसी प्रकार पहले दबाया हुआ मोह आन्तरिक युद्ध में थकी हुई उन प्रथम श्रेणी वाली आत्माओं को अपने वेग के द्वारा नीचे पटक देता है । एक बार सर्वथा दबाये जाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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