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________________ २७१ समत्व प्राप्ति की प्रक्रिया - योग, तप, आध्यात्मिक,.... लक्ष्य (संसारातीत अवस्था-निर्वाण) यद्यपि समान है, किन्तु उसे विविध नामों से पुकारते हैं, अतः शाब्दिक भेद होते हुए भी, तात्विक दृष्टि से उनमें भेद नहीं हैं। १ ।। जैन आध्यात्मिक क्षेत्र में 'निश्चय' और 'व्यवहार' - ये दो दृष्टियाँ प्रसिद्ध हैं। निश्चय दृष्टि निरपेक्ष आत्मनिष्ठ व्यापारों को विषय करती है, जबकि व्यवहार दृष्टि सापेक्ष आत्मात्रित व्यापार को, या अनात्मात्रित परिणामों को भी आत्मीय मानती है। आ० हरिभद्रसूरि ने उक्त दृष्टियों के आधार पर 'योग' के दो भेद किए हैं - (१) निश्चय और (२) व्यवहार योग । ' यहाँ आ. हरिभद्रसूरि ने निश्चय और व्यवहार इन दो दृष्टियों की भेदक-रेखा का स्पष्टीकरण करते हुए कहा है कि 'निश्चय योग' वह है जो फल को बिना विलम्ब किए नियमत: प्राप्त कराता है। इसी प्रकार 'व्यवहार योग' वह है जिसमें फल को प्राप्त कराने की सामान्य (परम्परया) योग्यता है। ३ सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र रूप तीनों रत्नों का आत्मा के साथ सम्बन्ध होना, अर्थात् आत्मा का रत्नत्रय रूप होकर स्थित होना, 'निश्चययोग' है । उक्त रत्नत्रय के कारण रूप से जो धार्मिक व्यापार प्रसिद्ध है, जैसे गुरु-विनय, गुरु-सेवा, तत्त्वज्ञान को सुनने की उत्कंठा एवं शास्त्रोक्त अनुष्ठान का पालन और शास्त्र निषिद्ध कर्त्तव्यों का अनाचरण आदि, ये सब व्यवहार योग' के अन्तर्गत परिगणित करने योग्य हैं। कारण में कार्य का उपचार करने की दृष्टि से योग के साधक उक्त अनुष्ठानों को भी 'योग' रूप से अभिहित किया गया है। 'व्यवहारयोग' 'निश्चययोग' में साधन है। आचार्य हरिभद्रसूरि के अनुसार उक्त 'व्यवहार योग' के पालन से उत्कृष्ट रत्नत्रय की अवश्य प्राप्ति होती है। ५ ‘व्यवहारयोग' का साधक भी योगसाधना की ओर गतिशील होने के कारण 'योगी' कहलाता है। ६ १. योगदृष्टि समुच्चय , १२७ - १३० २. इह यौगो द्विधा - निश्चयतो व्यवहारतश्चेति (योगशतक २ पर स्वोपज्ञ टीका) ३. योगशतक २, ४ की स्वोपज्ञ टीका ४. द्र० योगशतक, २-५ ५. योगशतक - ६ ६. योगशतक - ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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