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________________ २१४ समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि त्रिकाल विषयक है। प्रतिक्रमण शब्द मूल में अशुभ योगों से निवृत्ति के अर्थ में है। आत्मनिन्दनापश्चात्ताप द्वारा अतीत काल के अशुभ योगों से निवृत्ति होती है, अत: यह अतीत प्रतिक्रमण है, संवर के द्वारा वर्तमानकालीन अशुभ योगों से निवृत्ति होती है, इसलिए यह वर्तमान प्रतिक्रमण है और प्रत्याख्यान के द्वारा भविष्यत्कालिक अशुभ योगों से निवृत्ति होती है, इसलिए यह भविष्यत्कालीन प्रतिक्रमण माना जाता है। विशेषकाल की अपेक्षा से प्रतिक्रमण के पाँच भेद अतिप्राचीन तथा शास्त्र-सम्मत हैं (१) दैवसिक, (२) रात्रिक, (३) पाक्षिक (४) चातुर्मासिक एवं (५) सांवत्सरिक । ' यहाँ यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जब प्रतिदिन प्रात: और सायं दो बार प्रतिक्रमण हो ही जाता है, फिर पाक्षिक, चातुर्मासिक एवं सांवत्सरिक, ये प्रतिप्रमण क्यों किये जाते हैं ? दिन और रात में होने वाले अतिचारों (दोषों) की शुद्धि दैवसिक और रात्रिक प्रतिक्रमण द्वारा हो ही जाती है, फिर अन्य प्रतिक्रमणों की क्या आवश्यकता है ? इसका समाधानं आवश्यक चूर्णि में एक दृष्टान्त द्वारा किया गया है : जैसे गृहस्थ लोग अपने घरों में रोजाना सफाई करते हैं, कूडा-करकट निकालते है, कितनी ही सावधानी से सफाई की जाए, फिर भी कहीं धूल या कचरा जमा रह जाता है, अत: किसी विशिष्ट पर्व या त्यौहार के अवसर पर विशेष रूप से सफाई की जाती है। इसी प्रकार प्रतिदिन सुबह-शाम प्रतिक्रमण द्वारा भूलों का परिमार्जन करते रहने पर भी कुछ भूलों - दोषों का प्रमार्जन करना बाकी रह ही जाता है, उसके लिए पाक्षिक प्रतिक्रमण किया जाता है और पाक्षिक प्रतिक्रमण करने के बाद भी रही हुई भूलों का प्रमार्जन चातुर्मासिक प्रतिक्रमण से, और चातुर्मासिक प्रतिक्रमण से अवशिष्ट सूक्ष्म भूलों की प्रमार्जना (शुद्धि) सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करके की जाती है। प्रतिक्रमण के आठ पर्यायवाची शब्दों में प्रतिक्रमण के सभी रूपों का समावेश हो जाता है, जो चारित्र शुद्धि के लिए आवश्यक हैं । भद्रबाहुस्वामी ने आवश्यक नियुक्ति में प्रतिक्रमण के पर्यायवाची शब्दों का उल्लेख किया है । पडिक्कमणं पडियरणा, पडिहरणा वारणा नियत्ती य । १. भद्रबाहुकृत आवश्यक नियुक्ति गा. १२४७ १. आ. नि., गा. १२३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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