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________________ समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि के उच्चार अधिक-कम करने से और स्वर-व्यंजन के अशुद्ध उच्चार करने से अधिक अनर्थ होते हैं। (९) निरपेक्ष : सूत्र-सिद्धान्त की उपेक्षा करना, असत्य वचन बोलना अथवा बिना समझे उल्टी-पुल्टी बातें प्रस्तुत करना । (१०) मुण-मुण : मुणमुण का अर्थ है गुनगुनाना-सूत्र आदि के पाठ करते समय शब्दों के स्पष्ट उच्चारण न करना और त्वरा से नाक में से आधे अक्षरों का उच्चारण कर जैसे तैसे पाठोच्चारण करना । (अन्यों को आवागमन की सूचना देना इसे मुणमुण के विकल्प में दसवाँ दोष माना गया है। सामायिक में काया के निम्नलिखित बारह दोष बताये हैं : कुआसणं चलासणं चलादिट्ठी सांवज किरियाऽऽ लंबण कुंचण पसारण । आलस मोडन मल विमासणं निद्रा वेयावच्चति बारस काय दोसा ॥ (१) कुआसन (पर्थस्तिका) : सामायिक में पैर पर पैर चढ़ाकर अयोग्य रूप से अभिमानपूर्वक, अविनयपूर्वक बैठना । - (२) चलासन (अस्थिरासन) : सामायिक में अस्थिर और झूलते आसन पर बैठना । अथवा बैठने की जगह पुनः पुनः बदलना । (३) चल दृष्टि : दृष्टि स्थिर न रखकर चंचल रखना । सामायिक में इधर-उधर भिन्नभिन्न दिशाओं में देखते रहना।। (४) सावधक्रिया : सामायिक में बैठने के बाद पापरूप, दोषरूप कार्य करना अथवा गृहस्थ गृहकार्य करे या दूसरों के पास कराये । (५) आलंबन : भीत या अन्य चीजों का अवलंबन लेकर बैठना । यह आलस्थ, प्रमाद और अविनय का सूचन है। (६) आकुंचन प्रसारण : निष्प्रयोजन हाथ-पैर लंबे करने और वापस लेने । (७) आलस : आलस्य मरोड़ना । ... (८) मोटन (मोडन) : सामायिक में बैठे-बैठे हाथ और पैरों की अंगुलियाँ दबाकर आवाज करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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