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________________ १८६ समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि (६) काया से नहीं कराऊँगा । (७) मन से अनुमोदन नहीं करूँगा । (८) वचन से अनुमोदन नहीं करूँगा । (९) काया से अनुमोदन नहीं करूँगा । इस प्रकार 'करेमि भन्ते' में साधु भगवंतो के लिए नव भांगा अथवा नव कोटिपूर्वक पच्चक्खाण लेना आवश्यक है। गृहस्थों के लिए छह भांगा अथवा छह कोटि पूर्वक पच्चक्खाण लेना आवश्यक है । विधिपूर्वक सामायिक करते समय 'करेमि भन्ते सामाइयं' सूत्र द्वारा प्रतिज्ञा लेनी पड़ती है । भारतीय परंपरा में धार्मिक विधियों में प्रसंगानुसार और ध्येय महत्त्वानुसार मंत्र, स्तोत्र इत्यादि का एक बार, तीन बार, पाँच बार, सात बार, नव, बारह, इक्कीस या अधिक बार पठन उच्चारण किये जाते हैं । पहली बार के उच्चारण में त्वरा के कारण, अनवधान के कारण या अन्य किसी कारण से उसके अर्थ और हेतु में चित्त एकाग्र न हुआ हो तो अधिक उच्चारण से वह एकाग्र हो जाता है। ऐसी कुछ विधियों में मंत्रसूत्रादि को अधिक बार दुहराने की पद्धति सर्वमान्य है । (सार्वजनिक जीवन में भी कभी कभी शपथ विधि में या विधायक को अनुमोदन देने के लिए तीन बार पाठ करने की प्रथा का स्वीकार किया गया है ।) ऐसा अभिप्राय प्रदर्शित किया गया है कि सामायिक विधि में उसके प्रतिज्ञा - सूत्र का सबसे अधिक महत्त्व होने के कारण उसका उच्चारण एक बार नहीं किन्तु तीन बार करना चाहिए। कई शास्त्रकारों ने ऐसा अभिप्राय प्रदर्शित किया है । व्यवहार - सूत्र में (४ गाथा ३०९) कहा है 1 : सामाइयं तिगुणभट्ठगहणं च । उस पर भाष्य लिखते हुए आचार्य मलयगिरि ने लिखा है त्रिगुणं त्रीन वरान सेहो सामायिकमुच्चरयति । ( वर्तमान समय में श्वेतांबर मूर्तिपूजक समुदाय, सामायिक विधि में 'करेमि भन्ते' सूत्र का एक बार उच्चारण करता है । स्थानकवासी परंपरा में उसका उच्चारण तीन बार होता है । एक बार या तीन बार बोलने की यह परंपरा कितनी प्राचीन है और उसमें कब परिवर्तन हुआ वह भी संशोधन का एक रसपूर्ण विषय है ।) सामायिक का समय दो घडी से अधिक नहीं रखा गया क्योंकि मानवचित्त किसी भी विषय में सामान्यत: दो घड़ी से अधिक एकाग्र नहीं हो सकता । इस बात को यदि ध्यान में रखें तो, यदि सामायिक की विधि लम्बी या कठिन हो तो चित्त स्वस्थ और एकाग्र होने से पहले ही ऐसी विधि से श्रमित न हो जाय ? विधि के संदर्भ में यह प्रश्न एक महत्त्व का प्रश्न नहीं हो सकता ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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