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________________ १७७ समत्व - योग प्राप्त करने की क्रिया - सामायिक सामायिक के मुख्यत: तीन प्रकार बताये गये हैं (१) सम्यक्त्व सामायिक, (२) श्रुत सामायिक और (३) चारित्र सामायिक, ये तीन भेद हैं, क्योंकि सम्यक्त्व द्वारा, श्रुत द्वारा या चारित्र द्वारा ही समभाव में स्थिर रहा जा सकता है। चारित्र सामायिक भी अधिकारी की अपेक्षा से (१) देश और (२) सर्व, यों दो प्रकार का है । देश सामायिक चारित्र गृहस्थों को और सर्वसामायिक चारित्र साधुओं को होता है ।' समता, सम्यक्त्व, शान्ति, सुविहित आदि शब्द सामायिक के पर्याय हैं । ... गृहस्थों के लिए एक सामायिक एक मुहूर्त (दो घड़ी-४८ मिनट) का होता है। अत: वह सामायिक अल्प निश्चित काल के लिए ही हतो है। इसी लिए ही उस सामायिक को 'इत्वर कालिक' (अल्पकालीन कहा जाता है। साधु भगवंतों का सामायिक जीवन पर्यन्त का होता है। इसलिए उस सामायिक को ‘यादत्कथित' कहा जाता है। पूर्वकाल में गृहस्थों के सामायिक के भी दो प्रकार बताये गये थे। (१) ऋद्धिपात्र और सामान्य । राजवी, मंत्री, बड़े बड़े प्रेष्ठियों को बाजते बजाते धूमधाम सहित उपाश्रय में सामायिक करने के लिए जाना चाहिए जिससे सामान्य जनता अति प्रभावित हो । सामान्य गृहस्थ उपाश्रय में या घर में जो सामायिक करते थे उसे 'सामान्य सामायिक कहा जाता था । तदुपरान्त एक ऐसी भी मान्यता प्रवर्तमान थी कि गुणी लोगों को तो घर में ही सामायिक करना चाहिए। उन्हें उपाश्रय में सामायिक करने के लिए न आना चाहिए क्योंकि लेनदार सामायिक करने आया हो तो अपने लेनदार का या अन्य सामायिक कर्ताओं के मनोभावों में विकृति आने का अथवा तो उसमें खलल पहुँचने का पूरा संभव है। गृहस्थजन एक आसन पर बैठकर उचित वस्त्र पहनकर मर्यादित उपकरणों के साथ (रजोहरण, नवकारावली, ज्ञानग्रंथ) दो घड़ी का जो विधिपूर्वक सामायिक करते हैं उसे द्रव्य सामायिक कहते हैं। समता भाव की साधना ही उसका कर्तव्य लक्ष्य है । आत्मा का स्वभाव में रमण यही है 'निश्चय सामायिक' अथवा भाव सामायिक' । इसीलिए ‘भगवती सूत्र' में कहा गया है। अप्पा सामाइयं, अप्पा सामाइयस्स अत्थो।' (आत्मा सामायिक है । आत्मा ही सामायिक का अर्थ है ।) १. आ. नि., गा. ७६६ २. आ. नि., गा. १०३३ ३. भगवती सूत्र २/ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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