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________________ रहेगा। ___ आदरणीय पंडितवर्य, आगमवेत्ता, महामनीषी उदारमना पहाभूषण पं. दलसुखभाई मालवणिया की प्रेरणा और मार्गदर्शन के बिना यह कार्य असम्भव था । अपना अमूल्य समय निकाल कर उन्होंने मेरी इस पुस्तक का प्रूफ पढ़ा तथा समय-समय पर आवश्यक सुझाव दिये । संस्कृत तथा प्राकृत के श्लोकों में आई हुई त्रुटियों को सही करने में भी उनका योगदान रहा । उनके ऋण का उल्लेख मात्र करती हूँ क्योंकि मेरी इच्छा है कि मैं सदैव उनकी ऋण बनी रहूँ। उन गुरुजनों के प्रति, जिनके व्यक्तिगत स्नेह, प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन ने मुझे इस कार्य में सहयोग दिया है, यहाँ श्रद्धा प्रकट करना भी मेरा अनिवार्य कर्तव्य है । सौहार्द, सौजन्य एवं संयम की मूर्ति डॉ. भायाणी साहब की मैं अत्यन्त आभारी हूँ। अपने स्वास्थ्य तथा व्यक्तिगत कार्यों की चिंता नहीं करते हुए भी उन्होंने प्रस्तुत ग्रन्थ के अनेक अंशों को ध्यानपूर्वक पढ़ा एवं यथावसर उसमें सुधार एवं संशोधन के लिए निर्देश भी दिया । मैं नहीं समझती हूँ कि केवल शाब्दिक आभार व्यक्त करने मात्र से मैं उनके प्रति अपने दायित्व से उऋण हो सकती हूँ। ___ मैं उन सभी आचार्यों, लेखकों एवं अन्य विद्वानों की कृतज्ञ हूँ, जिनकी कृतियों का मैंने अपने कार्य में उपयोग किया है । तथा जिनके साहित्य ने न केवल मेरे चिंतन को दिशा-निर्देश दिया है वरन् जैन ग्रन्थों के अनेक महत्त्वपूर्ण संदर्भो को बिना प्रयास के मेरे लिए उपलब्ध कराया है। मैं अपने स्व. पूज्य पिताश्री एवं माताश्री की भी आभारी हूँ जिनके आशीर्वचन रूप बीज के प्रस्फुटन का ही यह साकार फल है । लेखन कार्य की व्यस्थता के अवसर पर मेरे पति डॉ. सज्जन सिंघवी तथा मेरे पुत्र संजय एवं संदीप से जो समय-समय पर सराहनीय प्रेरणा व सहयोग मिलता रहा है उसके लिए मैं हृदय से आभारी हूँ। इस ग्रंथ को प्रकाशित करने में नवदर्शन सोसायटी, व क्रिश्ना प्रिन्टर्स द्वारा जो सहयोग प्रदान किया गया उसके लिए भी मैं हृदय से आभारी हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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