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________________ समत्वयोग का आधार-शान्त रस तथा भावनाएँ ११३ के द्वारा किये जाते आत्मीयभाव, प्रेम, वात्सल्य एवं गुणग्राही व्यवहार को बिलकुल नहीं समझता और लगातार द्वेष और दुर्भावनावश माध्यस्थ्य भावनाशील के प्रति प्रहार, क्षति आदि करता ही चला जाता है । सामान्य साधक का तो उसके सामने टिकना भी कठिन हो जाता है। ऐसे लोगों से निपटने का एक ही रास्ता है - मौन, उपेक्षा, उदासीनता और तटस्थता धारण करना । किन्तु साथ ही ध्यान रहे कि ऐसे लोगों के प्रति राग-द्वेष या वैर विरोध एवं घृणा की भावना रत्तीभर भी नहीं रहनी चाहिए। (स) उपासना समत्वयोग को परिपुष्ट, संवर्धित एवं प्रोत्साहित करने के लिए ऐसे महान् पुरुषों की उपासना करना आवश्यक है, जो समता के उच्च शिखर पर आरूढ हों वीतराग हों । वीतराग, समता-शिरोमणि, मुक्त परमात्मा को अपने अन्तःकरण में विराजमान करके उनके समतापरिपोषक गुणों का गहराई से चिन्तन करके उनकी उपासना करने से ही समता की परिणति प्रतिपल टिकी रह सकती है, आत्मभावों में स्थिरता या मुक्त परमात्मा के गुणों में लीनता भी तभी रह सकती है और समता का दीपक हृदय-मन्दिर में तभी प्रज्वलित रह सकता है । आत्मिक प्रगति के लिए उपासना आवश्यक एवं अनिवार्य माध्यम है। उपासना में समत्व शिखरारूढ़ परमात्मा के साथ भावात्मक दृष्टि में समीपता, तादात्म्य एवं अनन्यनिष्ठा या अनन्यश्रद्धा होनी आवश्यक है। उपासना में परमात्मा से भावात्मक समीपता के लिए तीन बातों का निर्देश महामनीषी आचार्यों ने किया है - जप, अर्चा एवं ध्यान । यदि उपासना में श्रद्धा का अभिसिंचन और विश्वास का बल नहीं होगा तो कोरी क्रियाओं का उतना ही फल मिलेगा, जितना कि उतने समय तक किये गये हलके-फुलके शारीरिक श्रम का। उपासना का तात्पर्य है - प्रतिदिन समतामूर्ति परमात्मा की आराधना के लिए कुछ समय सुनिश्चित रूप से निर्धारित रखना । इस आधार पर आस्तिकता एवं आस्था की नींव अन्तःकरण में परिपक्व और सुदृढ़ हो जाती है। उत्कृष्टता एवं अनन्तता की प्रतिमूर्ति परमात्मा हैं । उनकी अनन्त शक्ति, अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन एवं अनन्त सुख पर विश्वास रखकर उनके साथ घनिष्ठता स्थापित करने से समतायोगी साधक का आत्मनिर्माण, आत्मशोधन, आत्मनिश्चय एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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