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________________ १०४ समत्वयोग-एक समनवयदृष्टि का अन्त करने की ठान ली । जैसे ही 'सेनेगल' से अफ्रीकी लड़कियों का जहाज भरकर आया, करुणापूर्ण हृदय के फलस्वरूप जोन हिटले ने अपनी सारी सम्पत्ति लगाकर पूरा जहाज ही खरीद लिया । उन लड़कियों से दास-दासी का काम कराने की अपेक्षा उसने उन्हें लिखना, पढ़ना और दस्तकारी का काम सिखाना प्रारम्भ कर दिया। दासों के साथ जोन ह्विटले का इस तरह का मानवीय व्यवहार देखकर अमेरिकी गोरे चिढ़ गये और वे जोन हिटले की जान के गाहक बन गये। उन्होंने जोन को ऐसा न करने को कहा तो उस करुणामूर्ति ने उत्तर दिया मैं नारी हूँ और उनकी आन्तरिक पवित्रता, हार्दिक वत्सलता को अच्छी तरह जानती हूँ। नारी फिर वह चाहे जिस देश की हो, उत्पीड़ित, दुःखित और व्यथित देखी नहीं जा सकती। आप लोग कुछ भी करें । मैं नारी का तिरस्कार नहीं होने दूंगी; वरना इन्हें जीवन की नई दिशा देने के लिए चाहे जितनी यातनाएँ सह लूँगी, अपमानित हो जाऊँगी; मैं अपने हृदय में प्रादुर्भूत करुणा को साकार बनाकर ही रहूँगी । गोरों ने उस महान नारी को तरहतरह से सताया, पर वह अपने पथ से जरा भी विचलित न हुई । वह इन लकड़ियों को शिक्षित करने में लगी रही । इन्हीं लड़कियों में से 'फिलिप' नाम की एक लड़की ने दास-प्रथा के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ दिया । उसने ऐसे प्रौढ़ और प्रखर युक्तियुक्त विचार प्रस्तुत किये कि अमेरिका के विचारकों का हृदय पसीज उठा । दूसरी ओर, सारे अफ्रीकी नीग्रो इस अमानवीय प्रथा के विरुद्ध बलिदान तक देने को तैयार हो गये। अन्त में जार्ज वाशिंग्टन स्वयं मानवीय समता के इन विचारों से प्रभावित हुआ । उसने नीग्रो लोगों को भी मानवीय अधिकार देने का निश्चय कर लिया। परन्तु 'फिलिप' अन्त तक इस सफलता का श्रेय जोन हिटले के करुणाप्रेरित त्याग को देती रही। वास्तव में, करुणा एक दिव्यगुण है, आत्मा का प्रकाश है । निर्मल भावनाओं में करुणाभावना सर्वोत्कृष्ट है । करुणाभावना का हृदय में प्रादुर्भाव होते ही अंतर से अभिमान, काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद आदि दुर्भाव अर्थात् मानसिक मल समाप्त हो जाते हैं। मनुष्य का हृदय-दर्पण अपनी दिव्य आभा से चमक उठता है, जिसमें वह विशुद्ध आत्मरूप परमात्मा के दर्शन कर सकता है। सच्ची करुणा सीमित नहीं, वह तो विश्वव्यापी है । क्षमतानिष्ठ साधक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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