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________________ ८४ समत्वयोग-एक समनवयदृष्टि स्वामीजी ने कहा - "सबसे पहले मित्र आप हैं, जिनके यहाँ मुझे सभी सुविधाएँ मिल जाएँगी।" और सचमुच आगन्तुक पर स्वामीजी की मैत्रीपूर्ण वाणी और उनकी आत्मीयता का ऐसा प्रभाव पड़ा कि वह व्यक्ति स्वामीजी का घनिष्ठ मित्र बन गया। सचमुच विश्वमैत्री की भावना व्यक्ति के लिए विश्व-कुटुम्बिता या आत्मीयता का वरदान है । एक पाश्चात्य वैज्ञानिक एडिसन (Addison) मैत्री की महिमा बताते हुए कहता है : Friendship improves happiness, and abates misery, by doubling our joy, and dividing our grief." मैत्री हमारी प्रसन्नता को दुगनी करते हुए, तथा हमारे गम (दुःख) को बाँटते हुए खुशी बढ़ाती है, और विपत्ति को कम कर देती है। भगवान् महावीर के संदेशानुसार विश्वमैत्रीभावना के धनी के ये उद्गार म मित्ती मे सव्वभूएसु, वेरं मज्झं न केणइ । मेरी समस्त प्राणियों के प्रति मैत्री है, मेरा किसी के भी साथ वैर-विरोध नहीं है। यजर्वेद में मैत्री भावना का रूप दिया है : मित्रस्य चक्षुषा सर्वाणि भूतानि पश्यामहे, मित्रस्य चक्षुषा मा सर्वभूतानि समीक्षताम् ।' मैं समस्त प्राणियों को मित्र की दृष्टि से देखता हूँ। मुझे समस्त प्राणी मित्र की दृष्टि से देखें । , रमण महर्षि ने अपने आश्रम (तिरुवन्नामलै) में क्रूर साँपों के साथ इतनी मैत्री कर ली कि वे कई बार उनके पास आते और लिपट जाते, मगर डसते नहीं थे । गिलहरी और बंदर भी उनके आत्मीय बन गये थे । ___ एक दिन हेनरी ने अपने नगर में आई हुई सरकस कंपनी से एक शेर खरीदा। उसे पिंजरे में लेकर हेनरी अपने घर आया। उसने पिंजरे का दरवाजा खोला और शेर को अपने घर में प्रवेश करने को कहा । शेर तथा सरकस कंपनी के १. आवश्यक अ. ८ २. यजुर्वेद ३६/१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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