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________________ ७८ समत्वयोग-एक समनवयदृष्टि भगवान् महावीर ने कहा - भावणाजोगसुद्धप्पा जले नावा व आहिया । जिसकी आत्मा भावनायोग से विशुद्ध होती है वह जल में नौका की तरह भावना की नौका में बैठकर दूर दीखने वाले तट पर पहुँच सकता है । यह भावना का ही चमत्कार था कि प्रसन्नचन्द्र राजर्षि जो कुछ ही देर पहले सातवीं नरक के यात्री बनने वाले थे, थोड़ी ही देर बाद सर्वार्थ सिद्ध देवलोक के यात्री बन सके और आश्चर्य की बात है कि उसी दौरान वे केवलज्ञानी होकर मोक्ष के यात्री बन गये । इसीलिए भावना से भावित होना प्रत्येक साधक के लिए आवश्यक है । समतायोगी भी भावितात्मा हुए बिना लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता । भावितात्मा होने के बाद वह जो होना चाहता है, हो जाता है । जिस रूप में व्यक्ति मन को बदलना चाहता है, बदल लेता है । मन एक आकार का होता है। उसके असंख्य पर्याय हैं। वह भिन्न-भिन्न आकारों में बदलता है। साधक जैसा चाहता है, तन्मयता और एकाग्रता के साथ जैसी भावना करता है वैसा ही हो जाता है, मन वैसा ही आकार लेने लगता है। योगवासिष्ठ में स्पष्ट कहा है - दृढ़भावनया चेतो यद्यथा भावयत्यलम् । तत्तत्फलं तदाकारं तावत्कालं प्रपश्यति ॥ हे राजन् ! यह मन दृढ़ भावना वाला होकर जैसा संकल्प करता है, उसे उसी आकार में, उतने समय तक और उसी प्रकार का फल देने वाला अनुभव होता भावना दूसरों तक भी पहुँचाई जा सकती है, दूसरों पर भी उसका प्रभाव डाला जा सकता है। दूसरों की कठिनाइयों को हल करना, बीमारी मिटाना, दूसरों का हृदय--परिवर्तन करना, दूसरे के विचार बदलना, ये सब भावना के प्रयोग हैं । भावना के माध्यम से स्वयं को, दूसरों को और पारिपाश्विक व्यक्ति एवं वातावरण को बदला जा सकता है। समतायोग की दृष्टि से जब हम भावनाओं पर विचार करते हैं तो सामायिकपाठ में सर्वप्रथम समत्व परिपुष्टि के हेतु मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ्य इन चार भावनाओं की अनुभूति पर बल दिया गया है । संक्षेप में संसार के समस्त १. तत्त्वार्थ- सूत्र अध्याय ७ सूत्र ६-उमास्वाति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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