SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१६४)जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन सभी मान्यताएं भिन्न-भिन्न होते हुए भी थोड़ी बहुत मिलती भी हैं । वर्तमान भूगोल के साथ इन बातों का अर्थात पूर्व मतों का कोई मेल नहीं बैठता, परन्तु यदि विशेषज्ञ चाहें तो इस विषय की गहराइयों में पहुँचकर पूर्व आचार्यों के मतों को सत्यापित कर सकते हैं और सत्यता पर अमिट छाप लगा सकते हैं। अधोलोक : अधोलोक मेरुतल के नीचे के क्षेत्र को कहते हैं। यह लोक नीचे से वेत्रासन अर्थात् मोढ़ के आकार का है, यह नीचे से चौड़ा और फिर घटता-घटता मध्य लोक तक संकरा है ।+ यह लोक ७ राज ऊचा और सात राजू मोटा है और सात राजू नीचे व एक राजू प्रमाण चौड़ा ऊपर है । इसमें ऊपर से नीचे तक क्रम से रत्नप्रभा, शकराप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा व महातमप्रभा नाम से सात पथिवियाँ लगभग एक राजू के अन्तराज से स्थित हैं। प्रत्येक पृथ्वी में १३, ११ आदि पटल १००० योजन अन्तराज से स्थित है जिनमें कुल मिलाकर ४६ पटल हैं। प्रत्येक पटल में अनेकों गुफायें हैं, अनेको बिल हैं, इन बिलों में नारकीय जीव रहते हैं । नारकीय जीवों के रहने के लिए अतिदुखएवं कष्टों से युक्त सात नरक हैं जहाँ पापी जीव मरकर जन्म लेते हैं। इस लोक में अत्यन्त भयंकर निवास-स्थान नपुसक जीवों के रहने के लिए हैं। इन नारकीय पध्वियों में से कुछ तो अत्यधिक उष्ण हैं, तो कुछ अत्यधिक शीतलता से युक्त हैं और अत्यन्त बर्फ से ढकी हुई हैं जो बहुत ही भयानक हैं। - + अधो वेत्रासनाकारो मध्ये स्याज्झल्लरी निभः । मृदड्.गाभस्ततोप्यूध्वंस त्रिति व्यवस्थितः ।। (ज्ञानार्णव ३६/८) रत्नशर्करा पालुकापड्.क धू मतमोमहातमः प्रभाः।। भूमियो घनाम्वु पाताकाश प्रतिष्ठाः सप्ताधोऽधः ॥ (तत्वार्थ सूत्र ३/१) नारका नित्याशुभतरलेश्यापरिणाम देहवेदना विक्रियाः। (वही ३/३) - ज्ञानार्णव ३६/११
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy