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________________ प्राप्त करने का अनन्य एवं अद्वितीय उपाय परमात्मा की प्रीति, भक्ति और शरणागति ही है । परमात्म-भक्ति के अनेक साधन हैं, उपाय हैं। अपनी पात्रता, भूमिका के अनुरूप उपाय का सम्मान करने से जीवन में भक्ति का विकास होता है। प्रस्तुत पुस्तक "जिन-भक्ति" में श्री अरिहन्त परमात्मा के गुणों के स्वरूप, उनका अचिन्त्य प्रभाव, समस्त विश्व पर उनके असंख्य उपकार, उनके साथ हमारे सम्बन्ध तथा उनकी स्तुति, वन्दना, अर्चना स्वरूप भक्ति फल आदि पर उत्तम प्रकार से प्रकाश डालने वाले अनेक संस्कृत स्तोत्रों आदि का संग्रह है, तथा साथ ही साथ इसे सुगम बनाने के लिये उनका हिन्दी अनुवाद भी दिया गया है । इसका एकाग्रता से गान, अर्थ-चिन्तन आदि करने से हमारे हृदय में श्री अरिहन्त परमात्मा के प्रति प्रेम का प्रवाह तीव्रता से प्रवाहित होने लगता है और हमारी चित्त-वृत्तियाँ निर्मल, शान्त एवं स्थिर बनती हैं । ... सांसारिक पदार्थों को हृदय में स्थान, मान एवं भाव देने में हमारी हो पात्मा का अपमान एवं अधःपतन होता है। हमारी आत्मा का वास्तविक सम्मान एवं उत्थान तो श्रीजिनेश्वर परमात्मा की निष्काम आराधना एवं उपासना करने से होता है और उस पाराधना एवं उपासना का प्रारम्भ परमात्मा की प्रीति एवं भक्ति से होता है । इस सत्य को स्वीकार करके जो व्यक्ति परम कल्याणकारी परमात्मा की उपासना में लीन होता है, वह व्यक्ति अवश्यमेव दिव्य आनन्द को अनुभूति करता है । अध्यात्म योगी तत्वदृष्टा पूज्यपाद पंन्यास प्रवर श्री भद्रकरविजयजी महाराज ने भक्ति-रसिक पुण्यात्माओं के भक्ति-रस में वृद्धि हो, उसकी पुष्टि हो, इस शुभ उद्देश्य से भक्ति-वर्धक प्राचीन स्तोत्रों का गुजराती अनुवाद सहित सुन्दर संकलन प्रकाशित किया था, जिसका अाज हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशन हो रहा है । आशा है हिन्दी भाषी जनता इससे अत्यन्त ही लाभान्वित होगी। संकलनकर्ता उन महापुरुष के चरणों में कृतज्ञ भाव से वन्दन हो । --विजयकलापूर्णसूरि | जिन भक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002534
Book TitleJina Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size5 MB
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