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________________ समस्त पदार्थों का ज्ञातृत्व ही यदि कर्तृत्व है तो उस बात से हम भी सहमत हैं, क्योंकि हमारा यह मत है कि सर्वज्ञ, मुक्त - देह रहित ( सिद्ध) देहधारी (रिहन्त ) भी है । ( ७ ) सृष्टिवादकुहेबाक - मुन्मुच्यत्यप्रमाणकम् । त्वच्छासने रमन्ते ते, येषां नाथ ! प्रसीदसि ||८|| हे नाथ ! जिनके ऊपर आप प्रसन्न हैं, वे आत्मा प्रमाण रहित सृष्टिवाद का दुराग्रह छोड़ कर आपके शासन में रमण करते हैं । ( ८ ) -0 आठवां प्रकाश सत्त्वस्यैकान्तनित्यत्वे, कृतनाशाकृतागमौ । स्यातामेकान्तनाशेऽपि कृतनाशाकृतागमौ ॥१॥ पदार्थ की एकान्त नित्यता मानने में कृतनाश एवं प्रकृतागम नामक दो दोष हैं । एकान्त अनित्यता मानने में भी कृतनाश एवं प्रकृतनाश नामक दो दोष विद्यमान हैं । (१) 84 ] श्रात्मन्येकान्त नित्ये स्यान्न भोगः सुखदुःखयोः । एकान्तानित्यरूपेऽपि न भोगः सुखदुःखयोः ॥ २ ॥ आत्मा को एकान्त नित्य मानने में सुख - दुःख का भोग घटता नहीं । एकान्त नित्य स्वरूप मानने में भी सुख - दुःख का भोग घटता नहीं है । (२) पुण्यपापे बन्धमोक्षौ न नित्यैकान्तदर्शने । पुण्यपापे बन्धमोक्षौ, नानित्यैकान्तदर्शने ॥ ३ ॥ एकान्त नित्य दर्शन में पुण्य एकान्त नित्य दर्शन में भी पुण्य हैं । (३) " Jain Education International पाप और बन्ध - मोक्ष घटते नहीं हैं । पाप और बंध-मोक्ष घटते नहीं क्रमाक्रमाभ्यां नित्यानां युज्यतेऽर्थक्रिया न हि । एकान्तक्षणिकत्वेऽपि, युज्यतेऽर्थक्रिया न हि ॥४॥ For Private & Personal Use Only [ जिन भक्ति www.jainelibrary.org
SR No.002534
Book TitleJina Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size5 MB
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