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________________ ४२ = गाथा संख्या विषय ४०८ अर्थ कल्पिक का स्वरूप और योग्यता। ४०९,४१० उभय कल्पिक का स्वरूप और योग्यता। ४११ उपस्थापना योग्य शिष्य का स्वरूप। अयोग्य शिष्य को उपस्थापना देने पर आचार्य को प्रायश्चित्त। ४१२ षड्जीवनिकाय के पांच अधिकार। ४१३ द्रव्य कल्प के छह प्रकार। उपस्थापना कल्प का स्वरूप। ४१५,४१६ विचारकल्पिक का स्वरूप। ४१७ स्थंडिल के अर्थाधिकार। ४१८ अचित्त, सचित्त और मिश्र स्थंडिल के भेद। ४१९ स्थंडिल संबंधी चतुभंगी। ४२०-४२४ आपात-असंलोक आदि स्थंडिलों का वर्णन। ४२५-४२९ अस्थंडिलों का उपयोग करने से निष्पन्न प्रायश्चित्त। ४३०-४३७ स्थंडिल भूमी में स्त्री, पुरुष, नपुंसक, पशु आदि के आपात से होने वाले उपसर्ग व उनसे होने वाले दोष। ४३८-४४१ काल और अकाल संज्ञाभूमि में जाने की विधि और प्रायश्चित्त। ४४२-४४४ विशुद्ध संज्ञाभूमी के लक्षण। ४४५ स्थंडिल भूमि के १०२४ भंग। ४४६ औपघातिक स्थंडिल के प्रकार। ४४७ विषम स्थंडिल के दोष। ४४८ स्थंडिल और अस्थंडिल का विवेक। ४४९ विस्तीर्ण व दूरावगाढ़ स्थंडिल का प्रमाण। ४५० आसन्न स्थंडिल के प्रकार। ४५१ बिल आदि युक्त अस्थंडिलों का उपयोग करने से समुत्पन्न दोष। ४५२-४५५ अविधि पूर्वक अस्थंडिल में व्युत्सर्ग करने से निष्पन्न प्रायश्चित्त। ४५६,४५७ शौचार्थ जाने वाले मुनि के लिए दिशा विवेक और स्थायिका विवेक। ४५८ कृमियुक्त कुक्षि वाले मुनि की उत्सर्ग क्रिया का विवेक। ४५९ शौचार्थी मुनि अपने उपकरण कैसे धारण करे। आलोक स्थंडिल के तीन प्रकार। छहकाय की विराधना से निष्पन्न प्रायश्चित्त। = बृहत्कल्पभाष्यम् गाथा संख्या विषय ४६२-४६९ प्रथम लक्षण स्थंडिल के अपवाद में द्वितीय आदि स्थंडिल की अनुज्ञा तथा वहां जाने की विधि। ४७० स्थंडिल कल्पिक के स्वरूप का वर्णन। ४७१ पात्र लेप लाने के लिए योग्य कौन ? ४७२ पात्र लेप शास्त्रविहित व तीर्थंकरों का उपदिष्ट। ४७३-४७५ लेप ग्रहण में उपघात व होने वाली विराधना। ४७६-४८० अलेपकृत पात्र से होने वाली विराधना। ४८१-४८७ लेप की अनुज्ञा। लिंपन की यतना और शिष्य द्वारा किए गए प्रश्न और उनका समाधान। ४८८-४९० पात्र लेप आचार्य की अनुज्ञा से। ४९१-४९६ लेप ग्रहण की विधि। . ४९७,४९८ राजा के शकटों से लेप ग्रहण की विधि। ४९९-५०६ अन्य शकटों से लेप ग्रहण की विधि तथा रात्रि संबंधी लेपग्रहण की विधि। ५०७ अमित लेप ग्रहण की अनुज्ञा नहीं। ५०८ लेपग्रहण संबंधी प्रायश्चित्त। ५०९,५१० लेप ग्रहण करने के पश्चात् गुरु को दिखाकर अन्य मुनियों को आमंत्रण दे। ५११-५१६ पात्र लेपन की विधियां। ५१७-५२० लेप लिप्त पात्र की परिकर्म विधि। ५२१,५२२ लेपयुक्तपात्र को आतप में रखने की विधि। जघन्यतः और उत्कृष्टतः पात्र के कितने लेप? ५२४ 'तज्जात लेप' क्या? ५२५ द्विचक्रलेप क्या? ५२६ कौन सा लेप इष्ट ? क्यों? ५२७ पात्र लेप का उद्देश्य संयम। सती-असती का दृष्टान्त। ५२८,५२९ नौबंध, स्तेनकबंध तथा जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट लेपों का स्वरूप। ५३० लेपकल्पित कौन? ५३१,५३२ पिण्डकल्पिक का स्वरूप। ५३३-५३५ उद्गम के अनेक प्रकार और उनके दोष संबंधी प्रायश्चित्त। उत्पादन दोष संबंधी प्रायश्चित्त। ५३७ एषणा दोष संबंधी प्रायश्चित्त। ५३८ निक्षिप्त संबंधी प्रायश्चित्त। पिहित संबंधी प्रायश्चित्त । ५४० संयोजना संबंधी प्रायश्चित्त। ५४१ शय्या के प्रकार। ५२३ ५३६ ५३९ ४६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002532
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages450
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size14 MB
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