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________________ = २२५ पहला उद्देशक गांव में वे बछड़े अपनी माताओं से बिछुड़ कर शब्द करने लगे। २२०३.वच्छग-गोणीसहेण असुवणं भोइए अहणि पुच्छा। सब्भावे परिकहिए, अन्नम्मि ठिओ निरुवरोहे॥ गायों के और बछड़ों के शब्दों से भोजिक को नींद नहीं आई। प्रातःकाल उसने पूछा कि गाएं और बछड़े क्यों चिल्ला रहे थे। तब आभीरी ने यथार्थ बात बताई। तब भोजिक अन्यत्र नियाघात स्थान में जाकर ठहर गया। २२०४.एवं चिय निरविक्खा,वइणीण ठिया निओगपमुहम्मि। जा तासि विराधणया, निरोधमादी तमावज्जे॥ इसी प्रकार कुछ निरपेक्ष साधु-साध्वियों से संबंधित गांव के निर्गम-प्रवेश द्वार पर ठहर गए। उससे साध्वियों को निरोध परितापना आदि विराधना सहन करनी होती है। उस विराधना से निष्पन्न प्रायश्चित्त साधुओं को आता है। २२०५.अहवण थेरा पत्ता, दह्र निक्कारणट्ठियं तं तु। भोइयनायं काउं, आउट्टि विसोहि निच्छुभणा॥ अथवा उसी गांव में कुल स्थविर आदि आ गए और नगरद्वार पर स्थित आचार्य आदि से वहां ठहरने का कारण पूछा। यदि निष्कारण ही वहां ठहरे हैं तो उनको भोजिक का दृष्टांत कहे। यदि वे वहां से निवृत्त हो जाएं तो प्रायश्चित्त दे और उस क्षेत्र से निष्कासन करने के लिए कह दे। २२०६.एवं ता दप्पेणं, पुट्ठो व भणिज्ज कारण ठिओ मि। तहियं तु इमा जयणा, किं कज्जं का य जयणाओ॥ इस प्रकार जो दर्प से-बिना कारण ऐसे स्थान में रहते हैं उनके दोष बताए हैं। कुल स्थविर द्वारा पूछने पर यदि कहे कि हम कारणवश यहां ठहरे हैं तो उनके लिए यह यतना है। शिष्य ने पूछा-क्या कार्य अर्थात् कारण और क्या यतना? २२०७.अद्धाणनिग्गयाई, अग्गुज्जाणे भवे पवेसो य। पुन्नो ऊणो व भवे, गमणं खमणं च सव्वासिं॥ मुनि यात्रा में प्रस्थित हैं। उन्हें ठहरना है। वह क्षेत्र संयतीभावित है। वे ग्राम के अग्र उद्यान में ठहरें और गीतार्थ को साध्वी के स्थान पर भेजें। वे यतनापूर्वक वहां प्रवेश करें। यदि साध्वियों का मासकल्प पूरा हो गया हो तो गांव में गमन करे। यदि न्यून हो और साधु वहां रहे तो सभी साध्वियों को क्षपण करना होता है। २२०८.उव्वाया वेला वा, दूरुट्ठियमाइणो व परगामे। ___ इय थेरऽज्जासिज्जं, विसंतऽणाबाहपुच्छा य॥ अध्वनिर्गत वे साधु संयतिक्षेत्र में पहुंचे हैं। वे अत्यंत परिश्रान्त हो गए हों, भिक्षावेला अतिक्रांत हो रही है, परग्राम दूरस्थित हो, वहां जाना संभव नहीं है, ऐसे सोचकर गांव के उद्यान में ठहर जाए। फिर स्थविर अर्थात् गीतार्थ मुनि साध्वियों के प्रतिश्रय में प्रवेश करे और साध्वियों को आचार्यवचन से संयमयोग निराबाध हैं ? (सुखसाता) पूछे। २२०९.अमुगत्थ गमिस्सामो, पुट्ठाऽपुट्ठा व ईय वोत्तूणं। इह भिक्खं काहामो, ठवणाइघरे परिकहेह।। उनके पूछने या न पूछने पर हम वहां जाएंगे यह कहकर उन्हें बताए-हम गांव में भिक्षा करेंगे। हमें स्थापनागृहों की जानकारी दें। साध्वियों के उत्तर देने पर२२१०.सामायारिकडा खलु, होइ अवड्डा (हे) य एगसाहीय। सीउण्हं पढमादी, पुरतो समगं व जयणाए। हे आर्ये! क्या आपने सामाचारी संपन्न कर ली या नहीं? गांव के आधे भाग में मुनि भिक्षा के लिए जायेंगे और अन्य आधे भाग में साध्वियां। एक गली में साधु और दूसरी गली में साध्वियां घूमेंगी। वे शीत या उष्ण, प्रथमालिका आदि ग्रहण करेंगे। संयतियों से पहले या साथ-साथ यतनापूर्वक भिक्षा के लिए पर्यटन करेंगे। (इसका विस्तृत अर्थ आगे।) २२११.कडमकड त्ति य मेरा, कडमेरा मित्ति बिति जइ पट्ठा। ताहे भणति थेरा, साहह कह गिहिमो भिक्खं॥ स्थविर मुनि साध्वियों को पूछते हैं-आर्या ! क्या आप मर्यादा सामाचारी को जानती हैं अथवा नहीं? यदि वे कहेंहमने मर्यादा समाचारी करली है, विधि को हम जानती हैं। तब स्थविर उनको कहे-आप कहें हम भिक्षा कैसे ग्रहण करें। २२१२.ता बेति अम्ह पुण्णो, मासो वच्चामु अहव खमणं णे। संपत्थियाउ अम्हे, पविसह वा जा वयं नीमो॥ तब आर्यिका कहती है-हमारा मासकल्प पूरा हो गया है। हम अन्यत्र चली जाएंगी। यदि पूर्ण न भी हुआ है तो हम सभी के क्षपण-तपस्या है। यदि क्षपण न हो तो कहती हैंहम भिक्षाटन के लिए प्रस्थित हैं अथवा हम जाएं उससे पूर्व आप भिक्षा कर लें। २२१३.विच्छिन्नो य पुरोहडो, अंतो भूमी य णे वियारस्स। सागारिओ व सन्नी, कुणइ अ सारक्खणं अम्हं।। पुरोहड विस्तीर्ण है। हमारे विचारभूमी गांव के आभ्यन्तर में है। जो हमारा सागारिक है-शय्यातर है वह संज्ञी-श्रावक है। वह हमारा संरक्षण करता है। २२१४.उभयस्सऽकारगम्मी, दोसीणे अहव तस्स असईए। संथरे भणंति तुम्हे, अडिएसु वयं अडीहामो॥ साधु और साध्वी-दोनों के दोषान्न अकारक हो तो अथवा दोषान्न के अभाव में संस्तरण होने पर साध्वियां कहती हैं-आर्य! पहले आप भिक्षाचर्या के लिए घूमें, पश्चात हम घूमेगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002532
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages450
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size14 MB
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