SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पीठिका = ३५ जैसे-नमिप्रव्रज्या', गौतमकेशीय', आर्द्रकीय, नालन्दीय आदि अध्ययन। ३१९. उज्जयसग्गुसग्गो, अववाओ तस्स चेव पडिवक्खो। उस्सग्गा विनिवतियं, धरेइ सालंबमववाओ।। उत्सर्ग का निरुक्त है-उद्यतः सर्गः-विहारः उत्सर्गः अर्थात् पूर्ण प्रयत्नपूर्वक निर्वाह योग्य मूल नियम। उसी का प्रतिपक्ष है-अपवाद। जो उत्सर्गमार्ग से प्रच्युत हो जाता है वह ज्ञान आदि का आलंबन लेकर अपवाद के मार्ग को धारण करता है। ३२०. धावतो उव्वाओ, मग्गन्नू किं न गच्छइ कमेणं। किं वा मउई किरिया, न कीरये असहुओ तिक्खं॥ शिष्य पूछता है-उत्सर्ग से अपवाद में आने वाला भग्नव्रत नहीं होता? आचार्य दृष्टांत देते हैं-कोई व्यक्ति अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए दौड़ता है। वह श्रान्त हो जाता है। तो क्या वह मार्गज्ञ व्यक्ति क्रमशः धीरे-धीरे नहीं चलता? क्या तीक्ष्ण क्रिया को न सह सकने वाले रोगी की मृदु क्रिया से चिकित्सा नहीं की जाती? इसी प्रकार उत्सर्गमार्ग से परिभ्रष्ट व्यक्ति अपवादमार्ग से चलता है। ३२१. उन्नयमविक्ख निन्नस्स पसिद्धी उन्नयस्स निन्नाओ। इय अन्नुन्नपसिन्दा, उस्सग्गऽववायमो तुल्ला॥ जैसे उन्नत की अपेक्षा से निम्न की प्रसिद्धि है और निम्न की अपेक्षा से उन्नत की प्रसिद्धि है, वैसे ही अन्योन्यप्रसिद्ध अर्थात् उत्सर्ग से अपवाद और अपवाद से उत्सर्ग प्रसिद्ध है, इस प्रकार उत्सर्ग और अपवाद-दोनों तुल्य हैं। ३२२. जावइया उस्सग्गा, तावइया चेव हुंति अववाया। जावइया अववाया, उस्सग्गा तत्तिया चेव॥ शिष्य ने पूछा-भंते! उत्सर्ग अल्प हैं अथवा अपवाद ? आचार्य ने कहा-दोनों तुल्य हैं। जितने उत्सर्ग हैं, उतने हैं अपवाद। जितने अपवाद हैं, उतने ही हैं उत्सर्ग। ३२३. सट्ठाणे सट्ठाणे, सेया बलिणो य हुंति खलु एए। सट्ठाण-परट्ठाणा, य हुंति वत्थूतो निप्फन्ना॥ ये दोनों अपने अपने स्थान में श्रेयस्कर और बलवान् होते हैं। परस्थान में वे अश्रेयस्कर और दुर्बल होते हैं। स्वस्थान और परस्थान वस्तु (पुरुष आदि) से निष्पन्न होते हैं। ३२४.संथरओ सट्ठाणं, उस्सग्गो असहूणो परहाणं। इय सट्ठाण परं वा, न होइ बत्थू विणा किंचि॥ जो मर्यादा के अनुसार जीवन यापन कर सकता है उस पुरुष के लिए उत्सर्ग स्वस्थान है और अपवाद परस्थान। जो मर्यादा के अनुसार जीवन यापन में असमर्थ है, उसके लिए अपवाद स्वस्थान है और उत्सर्ग परस्थान। इस प्रकार वस्तुपुरुष के बिना न किंचित् स्वस्थान अथवा परस्थान निष्पन्न होता है। ३२५. नाम निवाउवसग्गं, अक्खाइय मिस्सयं च नायव्वं । पंचविहं होइ पयं, लक्खणकारेहिं निहिट्ठ। पदलक्षणकारों ने पांच प्रकार के पदों का निर्देश किया है। १. नाम-जैसे-अश्व। २. निपात-जैसे-खलु। ३. उपसर्ग-जैसे-परि। ४. आख्यातिक जैसे-करोति करता है। ५. मिश्र-जैसे-संयत। ३२६. होइ पयत्थो चउहा, सामासिय तद्धिओ य धाउकओ। नेरुत्तिओ चउत्थो, तिण्ह पयाणं पुरिल्लाणं॥ पूर्ववर्ती तीन पदों नाम, निपात और उपसर्ग का चार प्रकार का पदार्थ होता है-सामासिक, तद्धित, धातुकृत और नैरुक्त। ३२६/१.दंदे य बहुव्वीही, कम्मधारय दिगूयए चेव। तप्पुरिस अव्वईभावे, एगसेसे य सत्तमे। सामासिक पदार्थ के सात प्रकार हैं-(१) द्वन्द्व, (२) बहुब्रीही, (३) कर्मधारय, (४) द्विगु, (५) तत्पुरुष, (६) अव्ययीभाव, (७) एक शेष। (जैसे-पुरुषश्च, पुरुषश्च, पुरुषश्च पुरुषाः।) ३२६/२. कम्मे सिप्पे सिलोगे य,संजोग-समीवओ य संजूहे। ईसरियाऽवच्चेण य, तद्धियअत्थो उ अट्ठविहो॥ तद्धित पदार्थ के आठ प्रकार हैं(१) कर्म से-जैसे-तृणहारक (२) शिल्प से-जैसे-जुलाहा अपवादसूत्र-कप्पइ निग्गंथाणं पक्के तालपलंबे भिन्नेऽअभिन्ने वा पडिगाहित्तए। कल्प. उ. १६३ औत्सर्गिक-आपवादिक-नो कप्पइ निग्गंथाणं वा निग्गंथीणं वा अन्नमन्नस्स मोयं आदित्तए वा आयमित्तए वा अन्नत्थागादेहि रोगायंकेहि। कल्प. उ. ५१४७-४८ • आपवादिक-औत्सर्गिक-चम्मं मंसं च दलाहि मा अट्ठियाणि। नात १. उत्तराध्ययन, नौवां अध्ययन। २. वही, तेईसवां अध्ययन। ३. सूत्रकृतांग, द्वितीय श्रुतस्कंध, छठा अध्ययन। ४. वही, सातवां अध्ययन। ५. वृत्तिकार ने अन्यान्य सूत्रों का सोदाहरण उल्लेख किया है• उत्सर्गसूत्र-नो कप्पइ निग्गंथाणं वा निग्गंथीणं वा आमे तालपलंबे अभिन्ने पडिगाहित्तए। कल्प. उ. ११२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002532
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages450
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy