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________________ २०५,१०,६,१-१०,७,१-५] सत्तरहमो संधि १३९ ॥ घत्ता ॥ सहसक्खु विरुज्झइ किर सण्णज्झइ 'मइँ ताय जियन्तें सुहड-कयन्ते ताव जंयन्ते दिण्णु रहु । अप्पुणु पहरणु धरहि कहुँ ॥ १० जयकारेवि सुरवई धाईओ जयन्तो। 'णिसियर थाहि थाहि कहिँ जाहि महु जियन्तो ॥१ वाहि वाहि सवडम्मुहु सन्दणु हउँ धव देमि पुरन्दर-णन्दणु ॥२ तीरिय-तोमर-कण्णिय-घायहुँ वहु-वावल्ल-भल्ल-णारायँहु ॥ ३ अद्धससिहिँ खुरुप्प-सेल्लंग्गहुँ पट्टिस-फलिह-सूल-फर-खरंगहुँ ॥ ४ . मोग्गर-लउडि-चित्तदण्डुण्डिहिँ सबल-हुलि-हल-मुसल-मुसुण्डिहिँ ॥ ५ झसर-तिसत्ति-परसु-इसु-पासहुँ कणय-कोन्त-घण-चक्क-सहासहुँ ॥ ६ रुक्ख-सिलायल-गिरिवर-घायहुँ हवि-जल-पवण-विजु-संघायहुँ' ॥७ तं णिसुणेवि सिरिमालि पहरिसिउ सुरवइ-सुअहो महारहु दरिसिउ ॥ ८ 'पइँ मेल्लेप्पिणु जय-सिरि-लाहवें को महु अण्णु देह धव आहवें ॥९ ॥धत्ता ॥ तो एव विसेसेवि सर संपेसेंवि छिण्णु जयन्तहों तणउ धउँ । गयणगण-लच्छिहें कमल-दलच्छिहें हारु णाई उच्छलेवि गउ ॥ १० [७] दहमुह-पित्तिएण दणु-देह-दारणेणं ।। ___ मुसुमूरिउ महारहो कणय-पहरणेणं ॥ १ एउ ण जाणेहुँ कहिँ गउ सन्दणु चुकंउ कह वि कह वि सुर-णन्दणु॥२ दुक्खु दुक्खु मुच्छा-विहलचल उद्विउ उद्ध-सुण्डु णं मयगलु ॥ ३ . भीसण-भिण्डिवाल-पहरण-धरु जाउहाण-रहु किउ सय-सक्कर ॥४ सो वि पहार-विहुरु णिच्चेयणु मुच्छ पराइउ पसरिय-चेयणुं ॥५ 14 P किह, s किहा. 6. 1PS सुरवइ. 2 P धाइयउ. 3A °घायहिं. 4A °णारायहिं. 5PS °सेलग्गहिं. 6P3 °फलिस. 7 PS °सग्गेहिं. 8 PS दंडद्धिहिं. 9 Ps मुसंढिहिं. 10 PS°पासेहिं. 11 PS °सहासेहिं. 12 PS °घायहिं. 13 P S °विजसंघायहिं. 14 PS धणु, A धउं, 15 PS गयणंगणि. 7. 1 जाणहं. 2 PS चुक्क. 3 PS मिडिमाल. 4 SA °वेयणु. २ इन्द्रपुत्रेण. [७] १ पुनर्भव-जीवितव्यः. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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