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________________ गावा ४५९८ शय्या संस्तारकप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथै सम्बन्ध पहेला शय्यासंस्तारकसूत्रनी व्याख्या ४५९९-४६०९ शय्या अने संस्तारकना परिशादी अने अपरिशाटी ए ये भेदो, तेने सोप्या सिवाय जनारने लागतां प्रायश्चित्त, दोषो अने तेने अंगेनां आपवादिक कारणो ४६१०-१४ ४६१० ४६११-१४ ४६१५-४९ ४६१५ ४६१६–१९ ४६२०-२१ ४६२२-४९ बृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम | विषय Jain Education International २३ बीजं शय्या संस्तारकसूत्र निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने शय्यातरना शय्या संस्तारकने पोते जे रीते तैयार कर्यो होय तेने विखेरी नाख्या सिवाय विहरवुं कल्पे नहि बीजा शय्यासंस्तारकसूत्रनो पूर्वसूत्र साथै संबंध वीजा शय्यासंस्तारकसूत्रनी व्याख्या सागारिकाना परिशाटी अपरिशादी शय्या - संस्तारकने विखेर्या सिवाय जवाथी संभवता दोषो २४ न्रीजुं शय्यासंस्तारकसूत्र निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओए शय्यातरनी मालकीना शय्यासंस्तारक चोराइ जाय तो तेनी शोध करवी जोइए. शोध करतां मळे तो ते ज शय्यातरने पाछा आपवा जोइए. ते छतां न मळी शके तो वीजी बार याचना करीने धारणा अने परिभोग कल्पी शके त्रीजा शय्यासंस्तारकसूत्रनो पूर्वसूत्र साथै सम्बन्ध त्रीजा शय्यासंस्तारकसूत्रजी व्याख्या संस्तारक आदि चोराई न जाय ते माटे वसति सूनी हि मूकवाने लगतो विधि अने तेने लगता दोषो वसतिने सूनी नहि मूकवानुं विधान होवाने कारणे निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओनां उपकरणो चोराइ जवानो संभव ज नथी तो पछी त्रीजा शय्यासंस्तारकसूत्रनी सार्थकता कइ रीते ए शंकानुं समाधान निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओनां उपकरणोने पडावी लेनार अथवा चोरी जनार द्रमक, चोर, राजमान्य पुरुष For Private & Personal Use Only ४७ पत्र १२४२ १२४२ १२४२-४४ १२४५-४६ १२४५ १२४५ १२४५-४६ १२४६-५३ १२४६ १२४६ १२४७ १२४७-४८ www.jainelibrary.org
SR No.002513
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages444
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size24 MB
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