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________________ ४० गाथा ४२८०-८७ ४२८८-९६ ४२९७-४३०७ ४३०८-६६ ४३०८ ४३०९-१८ ४३१९-२९ ४३३०-३१ ४३३३-६० बृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम | विषय जे कालमां, जे विधिथी अने जेटला मास पर्यंत चोमा रहेवुं जोइए तेनुं निरूपण अने तेनां कारणो वर्षावासना क्षेत्रथी नीकळेला निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओए वस्त्रादि ग्रहण करवानो विधि द्वितीय समवसरणसूत्रनी व्याख्या ऋतुबद्ध कालमां वस्त्रादिग्रहणनो विधि अपवादादि Jain Education International येथारनाधिकवस्त्रपरिभाजन प्रकृत सूत्र १६ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने यथारत्नाधिक वस्त्र लेवां कल्पे यथारत्नाधिकवस्त्रपरिभाजनप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथै सम्बन्ध १६ यथारत्नाधिकवस्त्र परिभाजनसूत्रनी व्याख्या एकाचार्यप्रतिबद्ध अने साम्भोगिक - असाम्भोगिक अनेकाचार्यप्रतिबद्ध क्षेत्रोमां निर्ग्रन्थसंघाटके वस्त्र लाववानो विधि, तेनुं यथारत्नाधिक परिभाजन, क्रमभंगने लगतां प्रायश्चित्तो, गुरुओने योग्य वस्त्रो, रत्नाधिको कोण ? अने कये क्रमे ? तेनुं स्वरूप निर्ग्रन्थोना समुदाये मळीने आणेलां वस्त्रोना परिभाजननो-वहेंचवानो क्रम, लोभी साधुओए निर्देशेलो वस्त्र वचवानो क्रम, लोभी साधुने समजाववानो प्रकार, कोई रीते नहि समजनार लोभी साधु लगतो वस्त्रपरभाजननों विधि, तेने धमaraarat विधि आदि क्षपके आगेलां वस्त्रोने वहेंचत्रानो विधि वस्त्र परिभाजनप्रसंगे लुब्ध साधु साथै थल विवादने अंते छुपके कहेल सचित्त- अवित्त-मिश्रना ग्रहणनो विधि पत्र ११६०-६२ ११६२-६४ १९६४-६६ ११६७-८० ११६७ ११६७ ११६७-६९ ११७०-७२ ११७२ ११७३-७९ १ आ ठेकाणे मूळमां यथारत्नाधिकवस्त्रग्रहणप्रकृतम् छपायुं छे तेने बदले यथारनाधिकवस्त्र परिभाजनप्रकृतम् समजवं ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002513
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages444
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size24 MB
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