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________________ बृहत्कल्पसूत्र तृतीय विभागंनो विपयानुक्रम । गाथा २९२४-६८ ८२८ २९२४-२६ २९२७-३४ २९३५-४२ २९४३-५७ विषय ४३ बीजं रात्रिभक्तसूत्र पूर्वप्रतिलिखित वसति संस्तारकादि सिवाय रात्रिमा वीजुं कशु ज लेवु कल्पे नहि वीजा रात्रिभक्तसूत्रनी व्याख्या उत्सर्गी रात्रिमा संस्तारक, वसति आदि ग्रहण करनारने लागतां प्रायश्चित्तो अने दोपो रात्रिमा वसति आदि ग्रहणने लगता अपवादो रात्रिमा गीतार्थ निर्ग्रन्थोमाटे वसति ग्रहणनो विधि अगीतार्थमिश्रित गीतार्थ निर्ग्रन्थोए रात्रिमा वसति ग्रहण करवानो विधि तेम ज अंधारामां वसतिनी प्रतिलेखनामाटे प्रकाश मंगाववाने लगती यतनाओ ग्रामादिनी बहार वसति ग्रहणने लगती यतनाओ, कुल, गण, संघादिनी रक्षा निमित्ते लागता अपराधोनी निर्दोषता अने तेने लगतुं सिंहत्रिकघातक कृतकरण श्रमण- उदाहरण ८२८ ८२९-३१ ८३१-३३ ८३३-३६ २९५८-६८ ८३६-३९ २९६९-३००० रात्रिवस्त्रादिग्रहणप्रकृत सूत्र ४४ ८३९-४७ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने रात्रिसमये अथवा विकाळ वेळाए वस्त्रादि लेवां कल्पे नहि २९६९ रात्रिवस्त्रादिग्रहणप्रकृतनो पूर्व सूत्रसाथे सम्बन्ध ८३९ रात्रिवस्त्रादिग्रहणसूत्रनी व्याख्या २९७०-७३ रात्रिमा वस्त्रादि ग्रहण करवाथी लागतां प्रायश्चित्तो अने तेने लगतो अपवाद ८३९-४० २९७४-७५ चौरविषयक संयतभद्र गृहिभद्र अने संयतप्रान्त गृहिप्रान्त पदनी चतुर्भंगी २९७६-७८ संयतभद्र-गृहिप्रान्त चोरद्वारा गृहस्थो लुटाया होय त्यारे तेमने वस्त्रादि आपवाने लगतो विधि ८४०-४१ १ आ ठेकाणे मूळमां वस्त्रप्रकृतम् एम छपायुं छे तेने बदले रात्रिवस्त्रादिग्रहणप्रकृतम् एम वांचq ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002512
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 03
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages364
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size19 MB
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