SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लिखित प्रतिओनो परिचय | १७ ठेकाणे थयो छे के आ हस्तक्षेप करनाराओए केटलीक वार भूलो पण करी छे, जेने विद्वानो अमे आपेल पाठान्तरो - टिप्पणो उपरथी जोई शकशे । आस्थळे अमने कोई प्रश्न करे के-आ बधी प्रतो पैकी मौलिकता शामां देखाय छे ? एना उत्तरमां अमे एटलुं चोक्कत कही शकीए छीए के भा० प्रतिमां थयेल परिवर्त्तन गमे तेलुं प्राचीन होय तेम छतां ते मौलिक नथी ज । कारण के एना वर्गनी प्रति ए पोते ज देखाय छे, तेम ज एनी भाषा शैली आदि मूल टीकांश करतां तद्दन जुदां पडी जाय छे । आ सिवायनी वीजी पांच प्रतो पैकी मो० ले० प्रतोमां अमने विशेष मौलिकता जणाय छे अने ए ज कारणथी अमे मोटे भागे ए प्रतिना पाठोने आखा ग्रन्थमां मुख्य स्थान आप्युं छे तेम छतां एनो सविशेष निर्णय करवानुं काम आ ग्रन्थना भाविमा सम्पादित थनार भागो उपर छोडीए छीए । अहीं अमे प्रतिओनी समानता विशेषता आदिमादे जे कांइ लख्युं छे ए बधुं य मोटे भागे पीठिका विभागने लक्षीने ज लख्युं छे । पाठान्तरोनी पद्धति । सामान्य रीते आ ग्रन्थमां आचार्य श्रीमलयगिरिकृत पीठिकावृत्तिना अंशमां पाठान्तरो बहु ज थोडा अथवा नहि जेवा ज आव्या छे, एटले प्रारम्भमां पाठान्तरो लेवामा अमे कोई खास पद्धति अखत्यार करी नथी । परन्तु आचार्य श्री क्षेमकीर्तिकृत पीठिकावृत्तिमां अने आगळ उपर ज्यां मोटा प्रमाणमां पाठान्तरो आव्यां छे त्यां अमे ते माटे केवो क्रम राख्यो छे ए अमारे अहीं जणाववानुं छे । आचार्य श्री क्षेमकीर्तिकृत पीठिकाटीकाना अंशमां प्रारम्भमां तो पाठान्तरो अस्तव्यस्त ज आवता रह्या छे । अर्थात् अमुक पाठ नियमित रीते अमुक प्रतोमां ज आवे तेम न हतुं एटले प्रारम्भमां ते माटेनो कशो ज क्रम रह्यो नथी के रखायो नथी । परन्तु आगळ चालतां अमने मो० ले० कां० प्रतिओ करतां भा० त० डे० प्रतिओ वधारे ठीक अने विशेष प्रामाणिक जणाई एथी अमे ए ऋण प्रतोने मुख्य राखीने काम लधुं छे । म छतां ज्यारे मात्र भा० प्रतिमां टीकानो अमुक संदर्भ वधारे पडतो जुदो आवे त्यारे त० डे० प्रतिने मुख्य राखीने काम लीधुं छे अने भा० प्रतिना जुदाई धरावता टीकासंदर्भने टिप्पणमां पाठान्तररूपे आपेल छे । जो के भा० प्रतिमांना आ पाठो केटलीक वर वधारे स्पष्ट अने विशदभाषामय होय छे तथापि सामान्य रीते टीकानी चालु भाषा करतां तेनी भाषा तद्दन जुदी पडती होई 'ते पाठो कोई विद्वान महाशये वदली नाखेला तेम ज उमेरेला होवा जोईए' एम अमे मानता होवाथी ए पाठोने मूळमां स्थान न आपत तेमने पाठान्तररूपे टिप्पणमां मूकवानुं योग्य मान्युं छे । जेम भा० त० डे० प्रतिओमां घणे ठेकाणे वधाराना पाठो आवे छे तेम कोई कोई For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002510
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages296
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy