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________________ जैनदर्शन में कारणवाद और पंचसमवाय ९ जो दार्शनिक गहनता, नैतिक व्यापकता और मनोवैज्ञानिक सूक्ष्मता भगवान् बुद्ध के द्वारा उपदिष्ट इस प्रतीत्य समुत्पाद संबंधी सिद्धान्त में है, वह अन्य दार्शनिक नय में दुर्लभ है। वास्तव में कारणवाद संबंधी ज्ञान ही भगवान् बुद्ध के सम्पूर्ण मन्तव्य का विश्लेषण है। जैन दर्शन में कार्य-कारण सिद्धान्त सदसत्कार्यवाद जैन दर्शन का कारण-कार्य सिद्धान्त 'सदसत्कार्यवाद' के नाम से अभिहित किया जा सकता है। जैन मतावलम्बियों के अनुसार 'बीज' रूपी कारण सत् भी है और असत् भी। इसी प्रकार 'वृक्ष' रूपी कार्य भी सत् व असत् दोनों हैं। बीज अपने स्वरूप से सत् है तथा वृक्ष के उत्पन्न होने से बीज की सत्ता नष्ट हो जाती है तब वह असत् होता है। वृक्ष जब बीज रूप में था तब वह असत् था और वृक्ष के रूप में वह सत् होता है। इस प्रकार जैन दार्शनिकों द्वारा निरूपित ‘सदसत्कार्यवाद' सिद्धान्त कारणकार्यवाद के सम्यक् स्वरूप को प्रकट करता है। इसमें कार्य-कारणवाद के सत्कारणवाद, सत्कार्यवाद, असत्कारणवाद और असत्कार्यवाद नामक चारों सिद्धान्तों का समन्वय हो जाता है। जैनमतानुसार प्रत्येक पदार्थ नित्यानित्यात्मक, सामान्यविशेषात्मक, द्रव्यपर्यायात्मक, भेदाभेदात्मक और सदसदात्मक है। कारण-कार्य सिद्धान्त के आधारभूत पदार्थ सदसदात्मक होने से जैन दर्शन में यह सिद्धान्त सदसत्कार्यवाद के नाम से प्रचलित है। सदसत्कार्यवाद का स्वरूप - एकान्त सत् अथवा एकान्त असत् पदार्थ न तो स्वयं उत्पन्न होते हैं और न ही किसी को उत्पन्न करने में समर्थ होते हैं। अत: उनमें कार्यकारणभाव भी नहीं बनता। कार्यकारणभाव वहीं होता है जहाँ कथंचित् सत्त्व और कथंचित् असत्त्व हो। इसलिए जैन दर्शन में सदसत्कार्यवाद को स्वीकार किया गया है। द्रव्य की दृष्टि से उसमें सत्कार्यवाद को महत्त्व दिया गया है तथा पर्याय की दृष्टि से असत्कार्यवाद स्वीकार किया गया है। दोनों के सम्मिलित स्वरूप में सदसत्कार्यवाद अंगीकृत है। कुन्दकुन्दाचार्य ने सत्कार्यवाद और असत्कार्यवाद का समन्वय द्रव्य-पर्याय दृष्टि के आधार पर अपने ग्रन्थ 'पंचास्तिकाय' में इस प्रकार किया है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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