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________________ xlvi १४२ १४३ १४३ १४४ १४४ १४४ १४५ १४७ १४९ , संस्कृत साहित्य में स्वभाववाद का स्वरूप • बुद्धचरित में बृहत्संहिता में • पंचतन्त्र में • हितोपदेश में - दार्शनिक कृतियों में स्वभाववाद की चर्चा • सांख्यकारिका और उसकी वृत्ति में स्वभाववाद • न्याय सूत्र एवं न्याय भाष्य में स्वभाववाद का विमर्श • वाक्यपदीय में स्वभाव की कारणता बौद्ध ग्रन्थ तत्त्वसंग्रह में स्वभाववाद की चर्चा • न्यायकुसुमांजलि में आकस्मिकवाद के अन्तर्गत स्वभाववाद • चार्वाक दर्शन में स्वभाववाद → जैन ग्रन्थों में स्वभाववाद का निरूपण • प्रश्नव्याकरण सूत्र एवं उसकी टीकाओं में नन्दीसूत्र की अवचूरि में हरिभद्रसूरि विरचित लोक तत्त्व निर्णय में शास्त्रवार्ता समुच्चय में स्वभाववाद का विस्तृत विवेचन आचारांग सूत्र की शीलांक टीका में सूत्रकृतांग की शीलांक टीका में क्रियावाद और अक्रियावाद में स्वभाववाद के भेद तिलोक काव्य कल्पतरु में स्वभाववाद का पद्यबद्ध रूप → स्वभाववाद का निरूपण एवं निरसन: विभिन्न ग्रन्थों में मल्लवादी क्षमाश्रमण के द्वादशारनयचक्र में स्वभाववाद का उपस्थापन एवं खण्डन १५४ १६१ १६१ १६३ १६४ १६७ १६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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