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________________ 56 डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी है कि चारों ओर स्रोत प्रवाह रहे हुए हैं इन्हें किस प्रकार रोका जा सकता है?१३४ समाधान के रूप में आगे गाथा में स्पष्ट किया गया है कि वस्तुतः जो पांच इन्द्रियों के मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्दादि विषयों पर राग-द्वेष नहीं करता है या आसक्त नहीं होता है वह सुगमता से बहते हुए स्रोतों पर रोक लगा सकता है।१३५ इस अध्याय के उपदेश की तुलना उत्तराध्ययन सूत्र के बत्तीसवें अध्याय में और आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कंध के 'भावना' नामक अध्याय से की जा सकती है। ३०. वायु तीसवें वायु ऋषि का उल्लेख जैन परंपरा में हमें ऋषिभाषित के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं होता है। यद्यपि महावीर के तीसरे गणधर का नाम 'वायुभूति' है, फिर भी यह कहना कठिन है कि वायु ऋषि और वायुभूति एक ही व्यक्ति हैं? __बौद्ध परंपरा में वायु का उल्लेख एक देवता के रूप में हुआ है। किन्तु वैदिक परंपरा में और महाभारत के शांतिपर्व में इनका उल्लेख एक ऋषि के रूप में इनका उल्लेख है। वायु ऋषि के उपदेश का मुख्य प्रतिपाद्य विषय भी कर्मसिद्धांत है। ऋषिभाषित के तीसवें अध्ययन में वे स्पष्ट रूप से कहते हैं कि जो जैसा बीज बोता है, वो वैसा ही फल पाता है। इंग्लिश में प्रचलित मुहावरा "As you sow, so shall you reap" से भी इसी तथ्य की पुष्टि होती है। आगे वे इसी अध्याय में कर्म की सबलता पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि कोई भी कर्म कभी निष्फल नहीं होता उसका फल कर्ता को अवश्य मिलता है चाहे वह शुभ हो या अशुभ हो। ३१. पार्श्व ऋषिभाषित का इकतीसवां अध्ययन पार्श्व नामक अर्हत ऋषि से संबंधित है। यह तो एक स्पष्ट और सत्य तथ्य है कि जैन परंपरा के चौबीस तीर्थंकरों में तेइसवें तीर्थंकर पार्श्व माने गए हैं। परंतु इस संदर्भ में मुख्य प्रश्न यह उपस्थित होता है कि ऋषिभाषित के अर्हत् पार्श्व ही तेईसवें तीर्थंकर पार्व है या पार्श्व नाम के कोई अन्य ऋषि हैं? जैन दार्शनिकों की मान्यतानुसार प्रस्तुत अर्हत् पार्श्व तीर्थंकर पार्श्व के समय में होने वाले प्रत्येक बुद्ध हैं, जो कि तीर्थंकर पार्श्व से पृथक् हैं।. परंतु विद्वत मण्डल - 133. (अ) सूत्रकृतांग सूत्र 1/6 (ब) कल्पसूत्र 4/145 134. सवन्ति सव्वतो साता, किं ण सोतोणिवारणं? . पुढे मुणी आइक्खे, कहं सोते पहिज्जति? 135. 29/4, 6, 8, 10, 12 -इसिभासियाई 29/1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002508
Book TitleRishibhashit ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkumari Sadhvi
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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