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________________ 31 ऋषिभाषित का दार्शनिक अध्ययन ब्रह्मसूत्र भाष्य और याज्ञवल्क्य की स्मृति की अपरादित्य टीका में असितदेवल का है । ४२ उल्लेख हुआ इस अध्याय का मुख्य प्रतिपाद्य विषय पापों से निवृत्त होकर मोक्ष प्राप्त करना है। इसमें हिंसा, झूठ, चोरी आदि को लेप कहा गया है और वस्तुत: वे ही बंधन है जो चतुर्गति संसार में परिभ्रमण कराते हैं। इसमें यह कहा गया है कि जो इनसे मुक्त होता है वह अजर, अमर, अव्याबाध मोक्ष पद को प्राप्त करता है। अतः समत्व की साधना पर बल देते हैं। इस प्रकार असितदेवल का उल्लेख तीनों ही परंपराओं में हुआ है। इससे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि वे एक ऐतिहासिक पुरुष है। जहाँ तक उनके उपदेशों का प्रश्न है वे मुख्यरूप से समत्व, इन्द्रिय संयम का उपदेश देते हैं। महाभारत में असितदेवल के संवाद में पंचमहाभूत, काल, भाव, अभाव आदि आठ नित्य तत्त्वों की स्थापना की गई है। ४. अंगिरस ऋषिभाषित का चतुर्थ अध्ययन अंगिरस ऋषि से संबंधित है। अंगिरस का उल्लेख जैन, बौद्ध और वैदिक तीनों ही परंपराओं में हुआ है। जैन परंपरा में इनका उल्लेख ऋषिभाषित में तो हुआ ही है किन्तु इसके अतिरिक्त आवश्यकचूर्णि ४३, आवश्यकभाष्य" और ऋषिमण्डल ४५ में भी हुआ है। वहाँ इन्हें तापस कौशिक का शिष्य कहा गया है। बौद्ध परंपरा के अनेक ग्रंथों में अनेक स्थानों पर आंगिरस का उल्लेख हुआ हे।४६ किन्तु वहाँ इन्हें अंगिरस वैदिक ऋषि भारद्वाज के रूप में उल्लिखित किया गया है। जातक में ब्रह्मलोक निवासी ग्यारह संन्यासियों में भी आंगिरस का उल्लेख हुआ है, जबकि सुत्तनिपात्त में इनका उल्लेख ऋषि भारद्वाज और सुंदरिक भारद्वाज के रूप में मिलता है । ४७ ऐसा लगता है कि अंगिरस के पीछे लगा भारद्वाज शब्द गोत्र का परिचायक है। क्योंकि सुत्तनिपात के वासट्कसुत्त में वशिष्ठ और भारद्वाज में ब्राह्मण के विषय में यह चर्चा हुई है कि ब्राह्मणत्व का मुख्य आधार शील सदाचार है या जन्म? समाधान के रूप में यह माना गया है कि ब्राह्मणत्व का आधार जन्म नहीं, 42. (अ) गीता 10/13 (ब) माठर वृत्ति 71 - " सांख्य दर्शन और विज्ञानभिक्षु-उर्मिला चतुर्वेदी । (स) ब्रह्मसूत्र भाष्य (द) याज्ञवल्क्य की स्मृति की अपरादित्य टीका 43. आवश्यक चूर्णि भाग 2, पृ. 79, 193 44. आवश्यकभाष्य, पृ. 782 45. ऋषिमण्डल, गाथा 123 46. देखें-'ईसिभासियाई' की भूमिका, डॉ सागरमल जैन 47. 'सुत्तनिपात', प्रथम खण्ड, पृ. 196 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002508
Book TitleRishibhashit ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkumari Sadhvi
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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