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________________ 142 डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी है। उनकी दृष्टि में "अप्रमत्तता ही मोक्ष की प्राप्ति का मुख्य तत्त्व है, क्योंकि उसके द्वारा ही काम को अकाम बनाकर वासनाओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है।"१५ ८. केतलीपुत्र द्वारा प्रतिपादित साधना मार्ग केतलीपुत्र के अनुसार राग द्वेष अथवा मिथ्यात्व रूपी ग्रंथियों का नष्ट हो जाना ही मोक्ष है। वे कहते हैं कि "जिस प्रकार रेशम का कीड़ा अपने स्वनिर्मित तंतु के बंधनों को काटकर मुक्त हो जाता है, उसी प्रकार व्यक्ति राग-द्वेष आदि ग्रंथियों का छेदन करके मुक्त हो जाता है।१६ उनकी दृष्टि में "राग द्वेष रूपी इस बंधन को जानकर ही तोड़ा जा सकता है। जो साधक रागद्वेष रूपी ग्रंथियों को जानकर उनका छेदन करता है, वही मोक्ष को प्राप्त करता है। अतः इनके अनुसार भी ज्ञान और संयम का समन्वय ही मोक्ष मार्ग सिद्ध होता है। ९. महाकाश्यप द्वारा प्रतिपादित मोक्ष मार्ग __ महाकाश्यप के अनुसार "दुख और बंधन का मूल कर्म है"१८ यहाँ कर्म से उनका तात्पर्य पूर्व आचरित पुण्य और पाप के संस्कारों से हैं। उनके अनुसार पुण्य और पाप के ये संस्कार मिथ्यात्व, अनिवृत्ति, प्रमाद, कषाय और योग से निर्मित होते हैं। अतः जन्म मरण की श्रृंखला या दुःख से विमुक्त होने के लिए कर्म बंधन के इन पांच कारणों का निराकरण आवश्यक है। इसके लिए वे संवर और निर्जरा को आवश्यक मानते है।२० संवर का तात्पर्य मानसिक, वाचिक और कायिक प्रवृत्तियों का संयमन है तो निर्जरा का तात्पर्य तप साधना के द्वारा पूर्व संचित कर्म संस्कारों या कर्म वर्गणाओं को समाप्त करना है। ये कर्म संस्कार किस प्रकार समाप्त हो, इसके लिए महाकाश्यप "युक्त-योगी" होने का निर्देश करते हैं।२१ युक्त योगी से उनका तात्पर्य समत्व को प्राप्त करना है। इस प्रकार वे मोक्ष के लिए चित्त की अनुकूलता को आवश्यक मानते हैं। अनुकूल परिस्थितियों और प्रतिकूल परिस्थितियों में चित्त का समत्व ही साधना का महत्त्वपूर्ण अंग है।२२ अतः मोक्ष मार्ग के रूप में उन्हें हम समत्व योग का प्रतिपादक कह सकते हैं। (1/24, 25)/33) 15. इसिभासियाई, 7/4 16. वही, 8/1 17. वही, 8/1 18. वही, 9/1 19. वही, 9/5 20. वही, 9/8, 10 21. वही, 9/15 22. वही, 929 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002508
Book TitleRishibhashit ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkumari Sadhvi
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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