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________________ 15 77 04 84 R4 Xh 86 ऋषिभाषित का दार्शनिक अध्ययन तृतीय अध्याय ऋषिभाषित में प्रतिपादित तत्त्वमीमांसा (1) ऋषिभाषित में प्रतिपादित सृष्टि मीमांसा (2) सृष्टि का मूल तत्त्व (3) लोकसृष्टा का प्रश्न (4) सृष्टि ब्रह्म की माया नहीं (5) विश्व अनादि अनन्त (6) ऋषिभाषित में सृष्टि के अनादि अनंत होने का तात्पर्य (7) विश्व के मूल तत्त्व का स्वरूप (8) सृष्टि के स्वरूप के संबंध में पार्श्व का दृष्टिकोण (9) सृष्टि के संबंध में श्रीगिरि का दृष्टिकोण (10) सृष्टि के संबंध में उत्कलवादियों के विचार (अ) सृष्टि का भौतिकवादी दृष्टिकोण (1) भौतिकवाद (2) जीवशरीरवाद (3) सन्ततिवाद (4) शून्यवाद (5) स्कन्धवाद (6) आत्म-अकर्तावाद (7) पंचास्तिकायवाद (11) ऋषिभाषित में वर्णित गति का सिद्धान्त चतुर्थ अध्याय ऋषिभाषित में वर्णित कर्मसिद्धान्त (1) कर्मसिद्धान्त : नैतिकता की पूर्वमान्यता (2) कर्मस्वतः फलप्रदाता (3) कर्म परम्परा की अनादिता (4) कर्मफल-विपाक स्वकृत या परकृत (5) कर्मफल संविभाग (6) कर्म के शुभत्व और अशुभत्व का आधार (7) कर्म के शुभाशुभत्व का आधार संकल्प (8) शुभाशुभ का अतिक्रमण (9) पुण्य (शुभ) की मूल्यवत्ता (10) कर्मबन्धन के कारण (11) अष्टविध कर्म ग्रन्थि (12) कर्म का स्वरूप (13) कर्म की विभिन्न अवस्थाएँ For Private & Personal Use Only 06 96 97 98 99 100 102 103 104 105 106 107 www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002508
Book TitleRishibhashit ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkumari Sadhvi
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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