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________________ उपदेश पुष्पमाला/ 47 इति निर्जित कल्पद्रुम-चिन्तामणिकामधेनुमाहात्म्यं । धन्यानां भवति शीलं, विशेषतः संयुक्ततपसां ।। 70|| कल्पवृक्ष, चिन्तामणिरत्न, कामधेनु, के महत्व को भी क्षीण करने वाला तप से युक्त शील-गुण विरलों को ही प्राप्त होता है, क्योंकि तप से युक्त शीलवान विशेष रुप से कर्मों की निर्जरा करता है। समयपसिद्धं च तवं, बाहिरममितरं च बारसहा। नाऊण जहाविरियं, कायव्वं तो सुहत्थीहिं।। 71 || समयप्रसिद्धं च तपः बाह्यमभ्यन्तरं च द्वादशधा। ज्ञात्वा यथावीर्य, कर्तव्यम् तद् सुखार्थिभिः।। 71।। शास्त्र में आभ्यन्तर एवं बाह्य ऐसा बारह प्रकार का तप प्रसिद्ध है। जिसे गुरु के सान्निध्य में समझकर, मोक्ष सुख के लिये यथा शक्ति प्राप्त करना चाहिये। ____ जं आमोसहिविप्पो-सही य संभिन्नसोयपमुहाओ। लद्धीओ हुति तवसा, सुदुल्लहा सुरवराणं पि।। 72 || यत् अमर्षोषधि-विपुडौषधिश्च संभिन्नश्रौतप्रमुखाः । लब्धाः भवन्ति तपसा, सुदुर्लभाः सुर वराणाम् अपि।। 72 || तप के प्रभाव से आमौषधि, विप्रदौषधि आदि भिन्न-भिन्न प्रकार की लब्धियाँ प्राप्त होती है, जो देवताओं को भी दुर्लभ है। ___ सुरसुंदरिकरचालिय-चमरुप्पीलो सुहाई सुरलोए। जं भुंजइ सुरनाहो, कुसुममिणं जाण तव तरुणो।। 73 ।। सुरसुन्दरी करचालितचमरोत्पीड़ः सुखानि सुरलोके। यद् भुड़क्ते सुरनाथः, कुसुममात्रमिव जनीहि तपतरोः।। 73 ।। कार्तिक सेठ ने पूर्व भव में किये विशुद्ध तप के प्रभाव से सुरलोक में इन्द्र के रुप में अप्सराओं द्वारा परिचालित छत्र-चामर आदि भौतिक सुखों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002507
Book TitleUpdesh Pushpamala
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, P000, & P050
File Size7 MB
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