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________________ उपदेश पुष्पमाला / 115 मद (अहंकार) आठ प्रकार का है 1. जाति 2. कुल 3. रूप 4. श्रुत 5. बल 6. लाभ 7. तप और 8 ऐश्वर्य । परमार्थ ज्ञाता एवं संसार भीरू साधक द्वारा इस मद का त्याग कर दिया जाता है। अन्नयरमउम्मत्तो, पावइ लहुयत्तणं सुगुरुओ वि । विबुहाण सोयणिज्जो, बालाण वि होइ हसणिज्जो ।। 293 ।। अन्यतर- मदोन्मत्तः, प्राप्नोति लघुतरत्वं सुगुरूकः अपि । विवुधानां शोचनीयः वालानां अपि भवति हसनीयः ।। 293 || इन आठ प्रकार के अहंकारों में से एक मद के द्वारा भी उन्मत्त होने पर महान् व्यक्ति भी लघुता (हीनत्व) को प्राप्त कर लेता है। यह अहंकार विद्वानों के लिये भी विचारणीय है, क्योंकि इसके कारण वे मूर्खों के द्वारा भी हँसी के पात्र बन जाते हैं । जइ नाणाइमओ वि हु, पडिसिद्धो, अठमाणमहणेहिं । तो सेसमयट्ठाणा, परिहरियव्वा पयत्तेणं ।। 294 ।। यदि ज्ञानादिमदोऽपि खलु प्रतिषिद्धं अष्टमानमथनैः । ततः शेषमदस्थानानि परिहर्तव्यानि प्रयत्नेन ।। 294 ।। यदि आठ प्रकार के अहंकार के मद में ज्ञानादि शुभ विषयों के भी अहंकार को निषिद्ध किया गया है तो फिर अन्य अहंकारों का क्या कहना । अर्थात् वे भी निषिद्ध ही है । उन्हें नहीं करना चाहिये । दप्पविसपरममंत्तं, नाण जो तेण गव्वमुव्वहइ । सलिलाओ तस्स अग्गी, समुट्ठिओ मंदपुन्नस्स ।। 295 ।। दर्पविषपरममन्त्रं, ज्ञानं यः तेन गर्वमुद्वहति । - सलिलात् तस्य अग्निः समुत्थितः मन्द पुण्यस्य ।। 295 ।। जाति आदि विषयक (अहंकार) रूपी विष से मुक्त होने के लिये ज्ञान की परमावश्यकता है। यदि ज्ञानी इतना जानने पर भी गर्व को वहन करता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002507
Book TitleUpdesh Pushpamala
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, P000, & P050
File Size7 MB
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