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________________ उतर- प्रतिक्रमण सूत्र-सम्बन्धी आय ज्ञान खाते में-पुस्तकादि लिखवाने के काम में ली जा सकती है। प्रश्न-३ स्वप्नों के घी की आय किस काम में ली जाय ? उत्तर-इस सम्बन्ध के अक्षर किसी पुस्तक में मुझे दृष्टिगोचर नहीं हुए परन्तु श्री सेन प्रश्न में और श्री हीर प्रश्न नाम के शास्त्र में उपधानमाला पहनने के घो की आय को देवद्रव्य में गिनी है । इस शास्त्र के आधार से कह सकता हैं कि स्वप्नों की आय को देवद्रव्य के रूप में मानना चाहिये । इस सम्बन्ध में अकेले मेरा ही यह अभिप्राय नहीं है अपितु श्री विजयकमलसूरीश्वरजी महाराज का तथा उपाध्यायजी वीरविजयजी महाराज का और प्रवतक कान्तिविजयजी महाराज आदि महात्माओं का भी ऐसा ही अभिप्राय है कि स्वप्नों की आय को देवद्रव्य मानना । . प्रश्न-४ केशर, चन्दन के व्यापार की आय किसमें गिनी जाय ? उत्तर- अपने पैसों से मंगाकर केशर-चन्दन बेचा हो और उसमें जो नफा हआ हो वह अपनी इच्छानुसार खर्च किया जा सकता है। परन्तु कोई अनजान व्यक्ति मन्दिर के पैसों से खरीदी न करले यह ध्यान रखना चाहिए। प्रश्न-५ देवद्रव्य में से पुजारी को पगार दी जा सकती है या नहीं ? उत्तर- पूजा करवाना अपने लाभ के लिए है । परमात्मा को उसकी आवश्यकता नहीं । इसलिये पुजारी को पगार देवद्रव्य में से नहीं दी जा सकती । कदाचित् किसी वसति रहित गाँव में 38 ] [ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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