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________________ . (१) प्रश्न- स्वप्न उतारना, घी चढ़ाना, फिर नीलाम करना और दो तीन रूपये मन बेचना, सो क्या भगवान का घी सौदा है ? उत्तर- स्वप्न उतारना, घी बोलना आदि धर्म की प्रभावना और जिनद्रव्य की वृद्धि का हेतु है । धर्म को प्रभावना करने से प्राणी तीर्थंकर गोत्र बांधता है, यह कयन श्री ज्ञातासूत्र में है। जिनद्रव्य को वृद्धि करने वाला भी तोर्थंकर गोत्र बांधता है, यह कथन सम्बोध सत्तरी शास्त्र में है । घी की बोली के वास्ते जो लिखा है उसका उत्तर यों जानो कि जैसे तुम्हारे आचारांगादि शास्त्र भगवान की वाणी दो या चार रुपये में बिकती है वैसे ही घी के विषय में भी मोल समझो। - 'समकित सारोद्धार' में से [बीसवीं सदी के अद्वितीय शासन प्रभावक, जंगमयुग प्रधानकल्प न्यायांभोनिधि पू. पाद आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजयानन्दसूरीश्वरजी महाराजश्री के विशाल सुविहित साधु-समुदाय में भी स्वप्न-द्रव्य को व्यवस्था के विषय में उस समय शास्त्रानुसारी मर्यादा का पालन कितनो चुश्तता से ओर कठोरता से होता था, यह बात निम्नलिखित पत्र-व्यवहार से स्पष्ट प्रतीत होती है। पूज्य आत्मारामजी म. श्री के शिष्यरत्न पू. प्रवर्तक श्री कान्तिविजयजी महाराजश्री के शिष्यरत्न पू. विद्वान् मुनिप्रवर श्री चतुरविजय महाराजश्री जो विद्वान् पू. मुनिवर श्री पुण्यविजयजी म. श्री के गुरुवर है, वे नीचे प्रकाशित किये जाने वाले पत्र में स्पष्ट 34 [ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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