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________________ (७) भायखला जैन उपाश्रय, लवलेन बम्बई नं. २७ ता. १५-८-५४ लि. विजयामृतसूरि. पं. प्रियंकरविजयगणि ( वर्तमान में पू. आ. म. श्री विजय प्रियंकरसूरिजी म. ) आदि की तरफ से - देवगुरु भक्तिकारक श्रावक अमीलाल रतिलाल योग्य धर्मलाभ | आपका कार्ड लालवाड़ी के पते का मिला। यहां प्रातः स्मरणीय गुरु महाराजश्री के पुण्य प्रसाद से सुखशाता वर्त रही है । देवद्रव्य के प्रश्न का शास्त्रीय आधार से चर्चा करके साधु सम्मेलन में निर्णय हो चुका है । अखिल भारतवर्षीय साधु सम्मेलन की एक पुस्तक प्रताकार में प्रकाशित हुई है, उसे देख लेना । वहाँ आ. विजय अमृतसूरिजी तथा मुनि श्री पार्श्वविजयजी आदि हैं-उनसे स्पष्टीकरण प्राप्त करना तथा उनकी सुखशाता पूछना । यही । अविच्छिन्न प्रभावशाली श्री वीतराग शासन को पाकर धर्म की आराधना में विशेष उद्यमवंत रहना - यही नरजन्म पाने की सार्थकता है । ( पू. श्री. म. श्री विजयनीति सू. म. श्री के समुदाय के ) (८) अहमदाबाद, दि. ११-१०-५४ सुयोग्य श्रमणोपासक श्रीयुत् शा. अमीलाल भाई जोग, धर्मलाभ | पत्र दो मिले । कार्यक्शात् विलम्ब हो गया । खैर । आपने चौदह स्वप्न, पालना, घोडियां और उपधान की माला की घी की बोली को रकम किस खाते में जमा करना -आदि के लिए लिखा । उसका उत्तर यह है कि परम्परा से आचार्य देवों ने स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ] [ 19
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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