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________________ ले जाना तो उचित नहीं लगता । तीर्थंकर देव को लक्ष्य में रखकर ही स्वप्न हैं तो उनके निमित्त से उत्पन्न रकम देवद्रव्य में ही जानी चाहिए । 'गप्प दीपिका समीर' नाम की पुस्तक में प्रश्नोत्तर में पूज्य स्व. आचार्यदेव विजयानन्दसूरिजी का भी ऐसा ही अभिप्राय छपा हुआ है । सबको धर्मलाभ कहना । द. : 'हेमन्तविजय के धर्मलाभ' (७) जैन उपाश्रय, कराड़ आचार्य श्री विजयरामचन्द्रसूरि की तरफ से धर्मलाभ | स्वप्न उतारने की क्रिया प्रभु-भक्ति के निमित्त ही होती है । अतः इसकी आमदनी कम हो, ऐसा कोई भी कदम उठाने से देवद्रव्य की आय को रोकने का पाप लगता है इसलिए आपका प्रस्ताव किसी भी तरह योग्य नहीं है परन्तु शास्त्र विरुद्ध है । साधारण की आय के लिये अनेक उपाय किये जा सकते हैं । अहमदाबाद आदि में स्वप्नों की उपज जीर्णोद्धार में दी जाती हैं। जिन-जिन स्थानों में गड़बड़ी होती है या हुई है तो वह अज्ञान का ही परिणाम है । अतः उनका उदाहरण लेकर आत्मनाशक वर्ताव किसी भी कल्याणकारी श्रीसंघ को नहीं करना चाहिए । सब जिनाज्ञा के रसिक और पालक बनें, यही अभिलाषा । | स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य 10 ]
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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