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________________ किया कि स्वप्नों की बोली के घी के भाव रु. ढाई की जगह रु. पाँच किये जावें । जिसमें से पूर्व की भांति ढाई रुपया देवद्रव्य में और ढाई रुपये साधारण खर्च की पूर्ति के लिए साधारण खाते में जमा किये जावें । उक्त प्रस्ताव में शास्त्रीय दृष्टि से या परम्परा से उचित गिना जा सकता है क्या ? इस सम्बन्ध में आपका अभिप्राय बताने की कृपा करें जिससे वह परिवर्तन करने की आवश्यकता हो तो समय पर शीघ्रता से किया जा सके । श्री सूरत, भरुच, बड़ौदा, खम्भात, अहमदाबाद, महेसाणा, पाटण, चाणस्मा, भावनगर आदि अन्य नगरों में क्या प्रणालिका है ? वे नगर स्वप्नों की बोली के घी आय का किस प्रकार उपयोग करते हैं ? इस विषय में आपका अनुभव बतलाने की कृपा करें। श्रीसंघ के उक्त प्रस्तावानुसार श्री स्वप्नों की बोली के घी की आय श्री देवद्रव्य और साधारण खाते में ले जाई जाय तो श्रीसंघ दोषित होता है या नहीं ? इस विषय में आपका अभिप्राय बतलाने की कृपा करे । संघ-प्रमुख -जमनादास मोरारजी . (२) दुबारा इस विषय में श्रीसंघ द्वारा लिखा गया - दूसरा-पत्र :_ 'सविनय निवेदन है कि यहाँ श्रीसंघ में स्वप्नों के घी की बोली का भाव ढाई रुपया गत वर्ष तक था। वह आमदनी देव स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य । [3
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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