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________________ में देव-द्रव्यादि धर्म-द्रव्य नहीं देना चाहिए । शास्त्रों में श्रावक को देवद्रव्यादि उधार देने की साफ मना की है। हा कहीं होवे ऐसा कोई ग्रन्थ देखने में नहीं आता । श्रावक को उधार देने में अनेक आपत्ति के साथ यह भी एक आपत्ति है कि श्रावक लज्जा से उधार लेने वाले श्रावक के पास उगाही न कर सके तो वह द्रव्य डुब भी जावे । तथा संचालन करने वाले ट्रस्टीओं को भी अपने नाम से या अन्य के नाम से उधार लेकर अपने पास कमाई करने के लिए देवद्रव्य नहीं रखना चाहिए । देव-द्रव्यादि द्रव्य से व्यापारादि करके श्रावक अपने लिए कमाई करे तो वह श्रावक दोष पात्र है। देवद्रव्य के मकान में भाडा देकर रहना चाहिए या नहीं ? इस विषय में पं. हर्षचन्द्र गणिवर कृत प्रश्न इस प्रकार है :.. किसी व्यक्ति ने अपना घर जिनालय को अर्पण कर दिया हो, उसमें कोई भी श्रावक किराया देकर रह सकता है या नहीं ? इस प्रश्न के उत्तर में पू. आ. भ. श्री सेनसूरिजी फरमाते है कि - ‘यद्यपि किराया देकर उसमें रहने में दोष नहीं लगता तो भी बिना किसी विशेष कारण के उस मकान में भाडा देकर भी रहना उचित नहीं लगता क्योंकि देवद्रव्य के , भोग आदि में निःशूकता का प्रसंग हो जाता है । (सेनप्रश्न, उल्लास : ३) पू. आ. भ. श्री वि. सेनसूरिजी महाराज जों जगद्गुरु आ. भ. श्री विजयहीरसूरि म. श्री के पट्टालंकार थे इन्होंने कितनी स्पष्टता के साथ यह बात कही है। आज तो परिस्थिति जगह जगह देखने में आती है । देवद्रव्य से बंधवाये हुए मकानों में श्रावक रहकर समय पर भाडा देने में आनाकानी करते हैं, उचित रीति से भी किराया बढ़ाने में टालमटोल करते हैं और देवद्रव्य की सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाते है, इस विषय स देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * ४७
SR No.002499
Book TitleDevdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalratnasuri
PublisherAdhyatmik Prakashan Samstha
Publication Year1997
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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