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________________ मारी करे चाडीचुगली ए मने न गमे जरी, तेथी ज में, आजीवनमां नथी कोइ पण खटपट करी, भवोभव मने नडजो कदी ना पाप आ पैशुन्यनु, आ पापमय... (१४) क्षणमां रति क्षणमां अरति आ छे स्वभाव अनादिनो, दुःखमां रति सुखमां अरति लावी बनुं समताभीनो, संपूर्ण रति बस, मोक्षमा हुं स्थापवाने रणझj, _____आ पापमय... (१५) अत्यंत निंदापात्र जे आ लोकमां य गणाय छे, ते पाप निंदा नाम, तजनार बहु वखणाय छे, तनुं काम नक्कामु हवे आ पारकी पंचातर्नु, आ पापमय... (१६) मायामृषावादे भरेली छे प्रभु मुज जिंदगी, ते छोडवानुं बळ मने दे, हुं करुं तुज बंदगी, ____बर्नु साचादिल आ एक मारुं स्वप्न छे आ जीवननु, आ पापमय... (१७) सहु पाप, सहु कर्मन, सहु दुःख, जे मूल छे मिथ्यात्व भूईं शूल छे, सम्यक्त्व रूईं फूल छे निष्पाप बनवा हे प्रभुजी ! शरण चाहुं आपर्नु, __ आ पापमय... (१८) ज्यां पाप ज्यारे एक पण तजवं अति मुश्केल छे, ते धन्य छे, जेओ अढारे पापथी विरमेल छे ! क्यां पापमय मुज जिंदगी, कयां पापशून्य मुनिजीवन! आ पापमय... (१९) - ७१
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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