SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ★ खेले अहो ! आ हंस जाणे मुखकमल पासे अहीं ! मुखकांति लेवा चांदसूरज सेवता पासे रही ! इन्द्रो स्वयं ढाळी रह्या आ श्वेत उज्जवल चामरो ! अरिहंत ! तुज सौन्दर्यलीला मुज नयनमां अवतरो ! ★ त्रैलोक्य महासाम्राज्यना स्वामी हवे छो प्रभु ! तमे देवो कहे : आ सूचववा सिंहासनम् निम्युं अमे सिंहासने बेसो प्रभु ! आ सृष्टिनुं मंगल करो ! अरिहंत ! तुज सौन्दर्यलीला मुज नयनमां अवतरो ! ★ आ दिव्यभामंडल अहो ! सूर्यप्रभा मंडल समुं भीतर-बहार बधे ज अजवाळां अजब फेलावतुं सौना हृदयमां आ वहावे हर्षनो अमृतझरो ! अरिहंत ! तुज सौन्दर्यलीला मुज नयनमां अवतरो ! ★ जे दिव्य दुंदुभिनाद देवोए कर्यो ते सांभळी, सौए विचार्य, शुं अषाढी गरजती आ वादळी शुं खळभळ्या आजे अचानक सामटा सौ. सागरो अरिहंत ! तुज सौन्दर्यलीला मुज नयनमां अवतरो ! ★ रत्नो थकी झळहळ अने झगमग सुवर्ण रजत थकी आ उत्तरोत्तर पुण्यवृद्धि सूचवता त्रण छत्रथी त्रण लोकने प्रभु ! आप आपो छो मजानो छांयडो ! अरिहंत ! तुज सौन्दर्यलीला मुज नयनमां अवतरो ! ★ दूरे गया सौ दोष, केवलज्ञान तुज हृदये रमे नरनाथ ने सुरनाथ सौ तुज चरणमां प्रेमे नमे झरणुं वहे तुज वाणीनुं ने पाप संतापो शमे ! अरिहंत ! तुज सौन्दर्यलीला मुज नयनमां अवतरो ! ४७
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy