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________________ सागर प्रभुनी देशना, माधव सुणीने हरखीया, अंजन रतन पडिमा भरावी, स्व विमाने स्थापीया, अति प्राचीन पडिमा, अंबाए हेते दीधी., ते नेमिप्रभुना दरिसणे, आनंद उरमांही वधी...४ कोडाकोडी वीश सागर, लाखन्यून प्रभु तमे, पावन करो छो विश्वने पगला पुनित पाडी तमे, सुण्याश्रवणे भावघरी, आव्यो प्रभु उलट धरी, दर्शन अमीरस मेह वूठा, तृप्ति पाम्यो आखरी...५ उपकारकारी नेमिवरने... मळवू छे तुजने नाथजी, जेम ज्योतने ज्योति मळे, भळवू छे मुजने तुज महीं, जेम बिंदु सिंधुमां भळे, विलंब ना करशो प्रभुजी, तडपी रह्यो छु तुम विना, उपकारकारी नेमिवरने, भावथी करूं वंदना... प्रति रोममां, प्रति श्वासमां, प्रति पलकमां, प्रभुतुंज छे, आ सृष्टिमां करूं दृष्टि ज्यां, ते दृश्यमां प्रभु तुं ज छे, - प्रति अणु अने परमाणुमां, संभळाय सूर तुज नामना, उपकारकारी नेमिवरने, भावथी करूं वंदना... (२) संस्मरणो ज्यां ताजा करूं, रोमांचथी मन माहरु, दिन-रात-सांज-सवारमां, बस स्मरण करतुं ताहरु, हती गाढ तुज-मुज लागणी, निर्मोही बनी विसरायना, उपकारकारी नेमिवरने, भावथी करूं वंदना...
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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