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________________ .. /५७ ५५ आनंदधरगिरि आत्मानंदने पामवा, मुनिवर कोडा कोड; आनंदधर ओ गिरिवरे, करतां दोडा दोड: सुखदायीगिरि सुखदायी ओ गिरि थयो, आपी अनंत सुखशात; तेहने पामी भवितणा, टळी गया दुःख व्रात. . भव्यानंदगिरि अनंत सिद्ध जिहां थया, करी अनशन शुभ भाव; भव्यानंद पामी करी, विलसे निज स्वभाव. ५८ परमानंदगिरि , परमानंदने पामतो, दरिसण लहे भवि जेह; तेह परम पदवी भणी, गतिलहे ससनेह. इष्टसिद्धिगिरि सर्व शाश्वती औषधि, सुवर्ण सिद्धि रसकूप; पुण्यशाळीने गिरि दीये, इष्टसिद्धि अनुप. . रामानंदगिरि आतमराम आनंदमां, झीले जेहनो संग, रामानंदगिरि वंदता, पामो सुख असंग. भव्याकर्षणगिरि भव्याकर्षणगिरि प्रति, प्रीत भविने अतीव; जिन अनंतनी प्रगति, आकर्षे ते भविजीव. दुःखहरगिरि गोमेधे घणुं दुःख लद्यं, रोगे पीडीयो भमंत; थयो अधिष्ठायक गिरि, दुःखहर गिरि भजंत. शिवानंदगिरि शिवनो आनंद जे गिरि, चढतां अनुभवे जीव; ___अहवा ते शिवगिरि प्रति, प्रगट्यो नेह अतीव. 30.
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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