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________________ २ W अनंततीर्थंकर परमात्माना कल्याकोथी पावन थयेल | श्री गिरनारजी महातीर्थना महाकल्याणकारी १०८ नाम सहितना १०८ खमासमणाना दुहा कैलासगिरि कैलासगिरिवरे शिववर्या, तीर्थंकरो अनंत; आगे अनंता पामशे, तीरथकल्प वदंत, उज्जयंतगिरि उज्जयंतगिरिवर मंडणो, शिवादेवीनो नंद; युदुकुलवंश उजाळीयो नमो नमो नेमिजिणंद. रैवतगिरि रैवतगिरि समरं सदा, सोरठ देश मोझार; मानवभव पामी करी, ध्यावं वारंवार, स्वर्णगिरि ओकेकुं पगलुं चढे, स्वर्णगिरि जेह; हेम वदे भवोभवतणां पातिक थाये छेह. गिरनारगिरि सोरठदेशमा संचर्यो, न चढ्योगढ गिरनार; सहसावन फरश्यो नहीं, अनो ओळे गयो अवतार. नंदभद्रगिरि आधि व्याधि उपाधि सौ, जाये तत्काळ दूर; भावथी नंदभद्र वंदता, पामे शिवसुख नूर. पारसगिरि लोह जिम कंचन बने, पारसमणिने योग; गिरि स्पर्शे चिन्मय बने, अशोकचंद सुयोग. c. 30४
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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