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________________ आ केशनुं लुंचन छे ( राग : संसार है एक नदियां... ) आ केशनुं लुंचन छे, आ कर्मोनुं लुंचन छे; कषायो छे काळा, तेनुं आ लुंचन छे... आ केशनुं नरकमां दुःख वेठ्या, तिर्यंचमां दुःख वेठ्या; आ तो जिन आणा छे, भवदुःखनुं भंजन छे... आ केश महासत्त्वना धारक जे, महापुण्यना धारक जे; ते लोच करे होंशे, अविचल जेनुं मन छे.. आ केशनुं हसता बांध्या कर्मों, ते रोता ना छूटे; लुंचन करता करता, पलमां तूटे बंधन... आ केशनुं आगळ पोथी ने पाछळ ( राग : झगमगता तारलानुं) आगळ पोथी ने पाछळ पातरा लेशो हाथमां दांडो लईने विहार करशो संघ सकळनी आशिष लईने पगलां भरशो. पोथी जेने परिणत थाये, संयम रसने चाखे रे (२) ज्ञानभक्तिनी अनुपम शक्ति, अरिहंतो तो भाखे रे (२) स्वाध्यायमां लीन थईने, समता धरशो... संघ सकळनी आगम आपे पातरामां खावानो, अधिकार रे (२) जेणे विद्या जिंन वचनोने हृदयमां स्वीकार रे (२) बेतालीश दोषोथी सावध रहेशो... संघ सकळनी ૨૦૧
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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