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________________ देवो जंखे तोपण जे वेश नथी मळतो, तमे पुण्य थकी पाम्या, अनी किंमत पारखजो, देवोथी पण ऊंचे तमे स्थान ग्रहण करजो, .. ओघो छे अंणमूलो... - - जा, संयम पथे, दीक्षाथी...। (राग - बाबुल की दुआयें लेती जा - निलकमल) जा, संयम पथे, दीक्षार्थी ! तारो पंथ सदा उझमाळ बने, जंजीर हती जे कर्मोनी, ते मुक्तिनी वरमाळ बने. जा, संयम पंथे.... होंशे होंशे तुं वेश धरे, ते वेश बने पावनकारी, उज्जवळता अनी खूब वधे, जेने भावथी वंदे संसारी, देवो पण झंखे दर्शनने, तारो अवो दिव्य दीदार बने. जा, संयम पंथे.... जे ज्ञान तने गुरुओ आप्यु, ते ऊतरे तारा अंतरमां, रगरगमां ओनो स्त्रोत वहे, ने प्रगटे तारा वर्तनमां, तारा ज्ञानदीपकना तेज थकी, आ दुनिया झाकझमाळ बने. . जा, संयम पंथे.... वीतरागतणां वचनो वदती, तारी वाणी हो अमृतधारा, कोई मारग ढूंढे अंधारे, तारां वेण करे त्यां अजवाळां, वैराग्यभरी मधुरी भाषा, तारा संयमनो शणगार बने. . जा, संयम पंथे.... जे परिवारे तुं आज भळे, ते उन्नत हो तुज नाम थकी, जीते सौनो तुं प्रेम सदा, तारा स्वार्थविहोणा काम थकी, शासननी जगमां शान वधे, तारा अवा शुभ संस्कार बने जा, संयम पंथे.... -
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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