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________________ दानधर्मनी ज्वलंत ज्योति.... (राग : मैत्री भावनुं पवित्र झरj) दानधर्मनी ज्वलंत ज्योति, जगमां निशदिन जल्या करे, टमटम थता दीवडाओने, नवी जिंदगी मल्या करे. तरफडता ने तरस्या जीव पर, वत्सलतानी वृष्टि हो, दुःखडां ओनां दूर करवानी, दाताओनी दृष्टि हो. अदकुं पामे अन्य थकी ते, अंतरमां हो उदारता, वधु मल्युं ते वहेंची देवू, वर्तनमां हो विशाळता, शुभ कार्योमां खरचे अनी, शक्ति दिनदिन वध्या करे, प्रीतछलकता परमारथना, पूर हृदयमां चढ्या करे. दिलना रंगे दान करे जे, ते मानवने धन्य हजो, 'आतमने अजवाळे अर्बु, पावन अनुं पुण्य हजो. तुं तारे के ना तारे... (राग : परायी हुं परायी - कन्यादान) तुं तारे के ना तारे, तारो साथ ना छेडुं, जे जोड्या तुजने हाथ बीजे हाथ ना जोडु, _ तुं तारे के ना तारे... चमत्कारो देखाडी कोई मुजने भरमावे, विचारो क्रांतिना फेलावी कोई बहेकावे, अनाथ समजीने लालचमां कोई लपटावे, ओ मायावी मृगजळनी पाछळ, नाथ ! ना दोडूं, तुं तारे के ना तारे... ૨૫૧
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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